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Thursday, 14 January 2016

राक्षसी ताड़का वध

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  04:21

राक्षसी ताड़का वध 
Tadka Rakshasi Vadha

राम, लक्ष्मण, भरत एवम शत्रुघ्न चारों राजकुमार अपनी शिक्षा पूरी कर अयोध्या लौटते हैं उनके पराक्रम की चर्चा सभी जगह हो रही हैं | उसी दौरान कुछ हिस्सों में राक्षसी राज होने के कारण जन मानुष बहुत दुखी एवम प्रताड़ित हैं तब सभी मुनि मिलकर इस समस्या के निवारण हेतु एक उपाय सोचते हैं एवम अयोध्या जाकर दशरथ नंदन को इस दुविधा के अंत के लिए बुलाना तय करते हैं | इसके लिए मुनिराज विश्वामित्र अयोध्या के लिये प्रस्थान करते हैं |

अयोध्या पहुंचकर विश्वामित्र राजा दशरथ से सारी स्थिती स्पष्ट करते हैं और राम को अपने साथ भेजने का आग्रह करते हैं | राजा दशरथ जनकल्याण के लिए सहर्ष राम को जाने की आज्ञा दे देते हैं | यह सुन लक्षमण गुरु विश्वामित्र के चरण पकड़ कर अपने भैया राम के साथ ले चलने का आग्रह करते हैं | भातृप्रेम के आगे सभी हार मान जाते है और लक्षमण को भाई राम के साथ जाने की आज्ञा दे देते हैं |
सुबह के समय राम, लक्ष्मण एवम मुनि विश्वामित्र नदी के किनारे पहुँचते हैं | दो राज कुमारो को देख सभी मुनि विश्वामित्र से उनका परिचय जानना चाहते हैं | तब विश्वामित्र सभी को बताते है कि ये दोनों अयोध्या के राजकुमार हैं | उनकी बाते सुनने के बाद वहाँ के लोग उन्हें नाव देते हैं और कहते हैं कि वे इस नदी को इसी नाव से पार करें | मुनिराज सभी को धन्यवाद देते हैं और नाव लेकर निकल पड़ते हैं | किनारे पर पहुँचने के बाद उन्हें एक घना जंगल मिलता हैं तब राम विश्वामित्र से पहुँचते हैं – गुरुवर यह कैसा घना डरावना जंगल हैं ? जहाँ चारों तरफ खतरनाक जंगली जानवरों का शोर हैं अंधकार इतना अधिक गहरा हैं पेड़ो की घनी शाखाओं के कारण सूर्य का तेज प्रकाश भी यहाँ तक पहुँच नहीं पा रहा | क्या नाम हैं इस डरावने जंगल का ? विश्वामित्र उत्तर देते हैं – हे राम ! जहाँ तुम इस भयावह जंगल को देख रहे हों, वहाँ कई वर्षों पहले दो समृद्ध राज्य करूप एवम मालदा हुआ करते थे | वे दोनों ही राज्य बहुत सम्पन्न थे | जहाँ धन सम्पदा की प्रचुर मात्रा थी और प्रजा भी खुशहाल थी |
लक्ष्मण ने उत्सुक्ता से पूछा – हे गुरुवर जब यहाँ इतने सुंदर राज्य थे तब उनका ऐसा भयावह परिणाम कैसे हुआ ? विश्वामित्र ने बताया – यह सब सम्पन्नता यक्ष की पुत्री ताड़का ने समाप्त की उसने इस सुंदर जगह को एक भयानक जंगल बना दिया | ताड़का एक साधारण स्त्री नहीं बल्कि दानव सुन्द की पत्नी एवम राक्षस मारिच की माता एक राक्षसी हैं  जिसमे हजार हाथियों के समान बल हैं जिसके कारण उसने और उसके पुत्र ने इस जगह पर बसे सुंदर राज्यों को उजाड़ दिया और यहाँ के नागरिको को मार डाला अथवा अपना दास बन लिया तब ही से इस जगह कोई आने की हिम्मत नहीं करता और अगर कोई गलती से आ भी जाये तो यहाँ से जिन्दा वापस नहीं जाता | यही कारण हैं जो मैं तुम दोनों को यहाँ लाया हूँ अब तुम्ही इस राक्षसी ताड़का का वध कर सकते हो |
 तब आश्चर्य के भाव के साथ राम पूछते हैं – गुरुवर एक स्त्री में तो सदैव कोमलता के भाव होते हैं | उसमे ममता और उदारता होती हैं फिर क्या कारण हैं जो ताड़का में हजारों हाथियों का बल हैं और वो उसका इतना भयानक उपयोग कर रही हैं |विश्वामित्र कहते हैं पुत्र राम तुम बिलकुल सही कह रहे हो | इस सबके पीछे एक बड़ा कारण हैं | बहुत समय पहले एक सुकेतु नामक यक्ष था जिनकी कोई संतान नहीं थी इसलिये उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने उसे एक कन्या संतान के रूप में दी | सुकेतु ने ब्रह्मदेव से अपनी संतान के लिये हजार हाथियों जितना बल माँगा और ब्रह्मदेव ने उसकी इच्छा पूरी की इसलिए ताड़का में इतना बल हैं | जब ताड़का की आयु विवाह योग्य हुई तब उसका विवाह दानव सुन्द से किया गया | सुन्द से उसकी एक संतान जन्मी जिसका नाम मारीच रखा गया | मारीच भी अपनी माँ के समान महाबलशाली था लेकिन मारीच सुन्द का पुत्र होते हुए भी दानव नहीं था लेकिन वो बहुत उपद्रवी था वो ऋषि मुनियों को बहुत प्रताड़ित करता था उसके इस कृत्य के कारण मुनि अगस्त ने उसे श्राप दिया और उसे एक दानव बना दिया | यह देख सुन्द को क्रोध आया और उसने अगस्त मुनि को मारने हेतु उन पर आक्रमण किया | सुन्द के आगे बढ़ते ही अगस्त मुनि ने उसे अपने श्राप से भस्म कर दिया | अपने पति की मृत्यु को देख ताड़का क्रोध से भर गई और अगस्त मुनि पर आक्रमण कर दिया तब मुनि उसे भी श्राप दिया और उसके सुंदर कोमल शरीर को भयानक कुरूप बना दिया |
तब ही से राक्षसी ताड़का बदले की आग में जल रही हैं और निर्दोष मानवों पर अत्याचार कर रही हैं | उसके इसी अत्याचार से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने के लिये मैं तुम दोनों को यहाँ लाया हूँ और अब तुम्हे ताड़का का वध करना होगा बिना यह सोचे की वो एक स्त्री हैं क्यूंकि वो एक श्रापित जिन्दगी जी रही हैं और मनुष्य जाति को प्रताड़ित कर रही हैं ऐसी स्त्री को मारना अधर्म नहीं है तुम बिना अड़चन उसका वध कर सकते हों क्यूंकि तुम्ही हो जो ताड़का को श्रापमुक्त कर सकता हैं और उसका सामना कर सकता हैं |
राम विश्वामित्र की बात मानते हैं और गुरु के आदेशानुसार ताड़का का वध करने के लिये एक नये शस्त्र ‘टंकार’ का आविष्कार करते हैं | टंकार एक ऐसा धनुष हैं जिसे खीचने पर असहनीय आवाज होती हैं जो चारों तरफ हाहाकार मचा देती हैं जिसे सुनकर जंगली जानवर डर कर भागने लगते हैं इस सबके कारण ताड़का को क्रोध आने लगता हैं और जब वो राम को धनुष बाण से सज्ज देख सोचती हैं कि यह राजकुमार विश्वामित्र द्वारा लाया गया हैं इसलिये अवश्य ही मेरे साम्राज्य को तबाह कर सकता हैं | वो तेजी से राम के उस शस्त्र पर झप्टा मारती हैं उसे देखकर राम लक्ष्मण से कहते हैं – लक्ष्मण देखो यह एक राक्षसी हैं जिसकी काया इतनी बड़ी हैं और कितनी कुरूप हैं यह मनुष्यों को मारने में आनंद अनुभव करती हैं और उनके रक्त का सेवन करती हैं इसलिए सावधान रहो और देखो मैं कैसे इसका संहार करता हूँ |
अपने विशाल काय शरीर के साथ ताड़का राम और लक्ष्मण के आस-पास घूम रही हैं उसकी गति प्रकाश की गति के समान तीव्र हैं | राम को विश्वामित्र ने कई शस्त्र प्रदान कर इस भयावह युद्ध के लिये पहले ही तैयार कर रखा था | राम और ताड़का के बीच बहुत देर तक युद्ध चलता हैं | अंत में राम ताड़का के ह्रदय स्थल पर तीर से आघात करते हैं और ताड़का धरा पर गिर जाती हैं | इस तरह राम राक्षसी ताड़का का वध करते हैं | यह देख सभी बहुत प्रसन्न होते हैं | और भयावह वन वापस  सुंदर राज्य में बदल जाता हैं |

भगवान राम की बहन शांता के जीवन का सच

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  04:17
रामायण की कहानी कई युगों से सभी लोग सुनते, देखते एवम पढ़ते आ रहे हैं जिसमे हमने राम और उनके भाइयों के प्रेम के बारे में विस्तार से जाना लेकिन हमने राम की बहन शांता के बारे में बहुत कम सुना हैं या कहे कि सुना ही नहीं हैं | आज हम आपको शांता के बारे में बतायेंगे | इसके पहले एक कहानी में हमने आपको हनुमान के पुत्र मकर ध्वज के बारे में बताया था जिसके बारे में भी सभी को स्पष्ट रूप से कोई जानकारी नहीं हैं | और अब आप जाने राम की बहन शांता के बारे में कौन थी शांता ? और क्यूँ उनका उल्लेख्य नहीं हैं ? और किस कारण उनका त्याग किय गया ?

भगवान राम की बहन शांता के जीवन का सच
Bhagwan Ram bahan Sister Shanta katha

महाराज दशरथ एवम रानी कौशल्या अयोध्या के राजा रानी थे | महाराज दशरथ की दो अन्य रानियाँ भी थी जिनके नाम कैकयी और सुमित्रा थे | सभी जानते हैं कि इनके चार पुत्र थे राम, भरत,लक्ष्मण, शत्रुघ्न | लेकिन यह कम लोगो को पता हैं कि इन चार पुत्रो के अलावा उनकी एक बड़ी बहन शांता भी थी | शांता कौशल्या माँ की पुत्री थी |
शांता एक बहुत होंनहार कन्या था वो हर क्षेत्र में निपूर्ण थी | उसे युद्ध कला, विज्ञान, साहित्य एवम पाक कला सभी का अनूठा ज्ञान था | अपने युद्ध कौशल से वह सदैव अपने पिता दशरथ को गौरवान्वित कर देती थी |
एक दिन रानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी अपने पति रोमपद के साथ अयोध्या आते हैं | राजा रोमपद अंग देश के राजा थे उनकी कोई संतान नहीं थी | एक समय जब सभी परिवारजन बैठ कर बाते कर रहे थे तब वर्षिणी का ध्यान राजकुमारी शांता की तरफ पड़ा और वे उनकी गतिविधी एवम शालीनता को देख कर प्रभावित हो गई और करुण शब्दों में यह कहने लगी कि अगर उनके नसीब में संतान हो तो शांता के समान सुशील हो | उनकी यह बात सुनकर राजा दशरथ उन्हें अपनी शांता गोद देने का वचन दे बैठते हैं | रघुकुल की रित प्राण जाई पर वचन न जाई के अनुसार राजा दशरथ एवम माता कौशल्या को अपनी पुत्री अंग देश के राजा रोमपद एवम रानी वर्षिणी को गोद देनी पड़ती हैं |
इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन जाती हैं | एक दिन अंगराज रोमपद अपनी गोद ली पुत्री शांता से विचार विमर्श कर रहे थे तब ही उनके दर पर एक ब्राह्मण याचक अपनी याचना लेकर आया लेकिन रोमपद अपनी वार्ता में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की याचना सुनी ही नहीं और ब्राह्मण को बिना कुछ लिए खाली हाथ जाना पड़ा | यह बात देवताओं के राजा इंद्र को बहुत बुरी लगी और उन्होंने वरुण देवता को अंगदेश में बारिश ना करने का हुक्म दिया | वरुण देवता ने यही किया और उस वर्ष अंगदेश में सुखा पड़ने से हाहाकार मच गया | इस समस्या से निजात पाने के लिये रोमपद ऋषि शृंग के पास जाते हैं | और उन से वर्षा की समस्या कहते हैं तब ऋषि श्रृंग रोमपद को यज्ञ करने को कहते हैं | ऋषि श्रृंग के कहेनुसार यज्ञ किया जाता हैं पुरे विधान से संपन्न होने के बाद अंग देश में वर्षा होती हैं और सूखे की समस्या खत्म होती हैं | ऋषि श्रृंग से प्रसन्न होकर अंगराज रोमपद ने अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया |
शांता के बाद राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी | वो अपने वंश के लिए बहुत चिंतित थे | तब वे ऋषि श्रृंग के पास जाते हैं और उन्हें पुत्र कामाक्षी यज्ञ करने का आग्रह करते हैं | तब अयोध्या के पूर्व दिशा में एक स्थान पर राजा दशरथ के लिए पुत्र कमिक्षी यज्ञ किया जाता  हैं |( यह यज्ञ ऋषि श्रृंग के आश्रम में किया गया था | आज भी इस स्थान पर इनकी स्मृतियाँ हैं | )इस यज्ञ के बाद प्रशाद के रूप में खीर रानी यशोदा को दी जाती हैं जिसे वे छोटी रानी कैकयी से बाँटती हैं बाद में दोनों रानी अपने हिस्से में से एक एक हिस्सा सबसे छोटी रानी सुमित्रा को देती हैं जिसके फलस्वरूप सुमित्रा को दो पुत्र लक्ष्मण एवम शत्रुघ्न होते हैं और रानी कौशल्या को दशरथ के जेष्ठ पुत्र राम की माता बनने का सौभाग्य मिलता हैं एवम रानी कैकयी को भरत की प्राप्ति होती हैं |
इस प्रकार शांता के त्याग के बाद राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त होते हैं | पुत्री वियोग के कारण रानी कौशल्या एवम राजा दशरथ के मध्य मतभेद उत्पन्न हो जाता हैं | शांता के बारे में चारों राज कुमारों को कुछ ज्ञात नहीं होता लेकिन समय के साथ वे माता कौशल्या के दुःख को महसूस करने लगते हैं तब राम कौशल्या से प्रश्न करते हैं तब राम को अपनी जेष्ठ बहन शांता के बारे में पता चलता हैं और वे अपनी माँ को बहन शांता से मिलवाते हैं इस प्रकार राम अपने माता पिता के बीच के मतभेद को दूर करते हैं |
देवी शांता के बारे में वाल्मीकि रामायण में कोई उल्लेख्य नहीं मिलता लेकिन दक्षिण के पुराणों में स्पष्ट रूप से शांता के चरित्र का वर्णन किया गया हैं |
भारत के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर हैं एवम वहां से 60 किलोमीटर की दुरी पर देवी शांता का मंदिर हैं | यह भी कहा जाता हैं कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी शांता का त्याग किया था | वैसे तो देवी शांता एक परिपूर्ण राजकुमारी थी लेकिन बेटी होने के कारण उनसे वंश वृद्धि एवम राज कार्य पूरा नहीं हो सकता था इसलिये राजा दशरथ को उनका परित्याग करना पड़ा |
इस प्रकार जब चारों भाई अपनी बहन शांता से मिलते हैं तो वे अपने भाइयों से अपने त्याग का फल मांगती हैं और उन्हें सदैव साथ रहने का वचन लेती हैं | भाई अपनी बहन के त्याग को व्यर्थ नहीं जाने देते और जीवन भर एक दुसरे की परछाई बनकर रहते हैं |
रामायण एक ऐसा ग्रन्थ हैं जिसमें सभी रिश्तों की गहराई मर्यादा एवम सबसे अधिक वचन पालन का महत्व बताया हैं | इस प्रकार रामायण से जुडी कहानियाँ हमें उचित मार्गदर्शन करती हैं हमें रिश्तों की मर्यादा का भान कराती हैं | यह कहानियाँ आज के समय में संस्कारों का महत्व बताती हैं एवम व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं | कई तरह की कहानियों का संग्रह किया गया हैं जरुर पढ़े

स्टे हंगरी स्टे फूलिश स्टीव जॉब्स स्पीच

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  04:16
मैं आज अपने आपको भाग्यशाली  महसूस कर रहा हूँ कि मैं दुनियाँ के अच्छे विश्वविद्यालय में से एक के दीक्षांत समारोह का हिस्सा हूँ जबकि मैंने किसी भी महाविद्यालय से स्नातक की तालीम प्राप्त नहीं की हैं | सच कहूँगा यह पहला समय हैं जब मैंने किसी कॉलेज को इतने नजदीक से देखा हो | आज मैं आप सभी से अपने जीवन की तीन कहानियाँ कहना चाहता हूँ जो कि महज़ मेरे जीवन की कहानियाँ हैं और कुछ नहीं |


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मेरी पहली कहानी हैं connecting the dots :
मैंने मेरी Reed College से शुरू की गई पढाई छह महीने में ही छोड़ दी लेकिन मैं अगले अठाहरा महीने तक वहाँ आता जाता रहा | जब मैं वहाँ जा ही रहा था तो मैंने पढाई क्यूँ छोड़ी ?
इसकी शुरुवात मेरे जन्म से पहले हो चुकी थी | मेरी जैविक माँ जो कि अविवाहित नव युवती स्नातक छात्रा थी वह मुझे किसी अन्य को गोद दे देना चाहती थी | उनकी सोच बहुत दृढ़ थी कि मुझे कोई कॉलेज ग्रेजुएट गोद ले, जैसे मेरे लिये सब कुछ तय था और मुझे एक वकील और उनकी पत्नी गोद लेने वाले थे और मैं उन्हें दिया जाने वाला ही था कि उन्होंने लास्ट मिनिट पर अपना निर्णय बदल दिया कि उन्हें अब एक लड़की ही गोद लेनी हैं |इसके बाद उन्हें कॉल किया गया जो मुझे गोद लेने वाली वेटिंग लिस्ट में थे | कॉल करके कहा गया हमारे पास एक बेबी बॉय हैं क्या आप उसे गोद लेना चाहते हैं उधर से हाँ का जवाब आया | उसके बाद मेरी जैविक माँ को पता चला कि मेरी होने वाली माँ ग्रेजुएट नहीं हैं और पिता ने तो स्कूल भी पूरा नहीं किया हैं तब उन्होंने से पेपर पर साइन करने से इनकार कर दिया | लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने हाँ कर दिया क्यूंकि मेरे भविष्य के माता पिता ने उनसे कहा कि वो मुझे एक दिन कॉलेज जरुर भेजेंगे |
सत्रह साल बाद मैं कॉलेज गया और मैंने एक ऐसा कॉलेज चुन लिया जो स्टैंडफोर्ड जितना ही महंगा था और इसमें मेरे माता पिता के जीवन की सारी कमाई मेरी फीस मे व्यव होने लगी थी |छः महीने बीतने के बाद मुझे महसूस हुआ कि यह सब व्यर्थ हैं | मुझे कोई आईडिया नहीं था कि मैं अपने जीवन के लिए क्या चाहता हूँ और वो मुझे इस कॉलेज की पढाई से मिलेगा भी या नहीं और मैं इस कॉलेज में अपने माता पिता की जीवन भर की कमाई लगा रहा था इसलिए मैंने उसे छोड़ने का निर्णय लिया और इस विश्वास के साथ यह निर्णय लिया कि इससे बहार निकलने से मेरा अच्छा ही होगा | उस वक्त यह मेरे लिये एक भयानक निर्णय था लेकिन आज जब पीछे मुढ़कर देखता हूँ तो वो मुझे अब तक का सबसे सही निर्णय लगता हैं |उस समय जब मैंने यह सब छोड़ा तब मुझ पर क्लासेज अटेंड करने की बाध्यता समाप्त हो सकी और मैंने केवल उन्ही क्लास को अटेंड किया जिसमे मुझे इंटरेस्ट था |
यह सब इतना प्रेम पूर्वक नहीं हुआ |मेरे पास एक कमरा तक नही था मैं एक मित्र के कमरे में फर्श पर सोता था मैं कोक की बोतल बेच कर उससे मिलने वाले धन से भोजन खाता था | मैंने प्रति रविवार को सात मिल चल कर कृष्ण मंदिर जाता था जहाँ मुझे सप्ताह में एक दिन भर पेट भोजन मिलता था जो मुझे बहुत अच्छा लगता था | मेरे जीवन में जो भी मैंने अपने उत्साह एवं अंतर्मन से किया उसका परिणाम मेरे लिये अनमोल रहा | मुझे एक और उदाहरण देने दो |
उस समय Reed College पुरे देश में सबसे अच्छी केलीग्राफी सिखाने वाला इंस्टीट्यूट था | पुरे कॉलेज में सभी पोस्टर, ड्रावर पर लिखे लेबल सभी सुंदर केलीग्राफी से सजे हुये थे | चूँकि में छोड़ चूका था इसलिए सभी क्लासेस अटेंड नहीं करता था लेकिन मैंने केलिग्राफी सिखने के लिए उसकी क्लासेज अटेंड करने की सोची | मैंने सेरिफ और सेन सेरिफ टाइप, विभिन्न वर्णों के अक्षरों के बीच बढ़ने वाले स्पेस के बारे में और वह सभी जो इस महान कला को महान बनाता हैं वो सिखा | यह बहुत सुंदर, एतिहासिक, कलापूर्ण जो विज्ञान के क्षेत्र से बहुत दूर थी जो मुझे बहुत आकर्षक लगती थी |
मुझे इस कला को सीखते वक्त एक बार भी विचार नहीं आया था कि मैं कभी इसका कोई प्रेक्टिकल यूज़ करूँगा लेकिन जब दस साल बाद हमने अपना पहला Macintosh computer डिजाईन किया और हमने इसे पूरा MAC में बनाया यह पहला कंप्यूटर था जिसकी टाइपोग्राफी बहुत सुंदर थी |अगर मैंने कभी इस एक क्लास पर कॉलेज ड्राप नहीं किया होता तो यह MAC कंप्यूटर नहीं बन पाता जिसकी मल्टीप्ल टाइपफेसेस और समान स्पेस फोंट्स हैं |और चूँकि विंडो ने MAC की कॉपी किया हैं ऐसा न होता तो शायद ही किसी पर्सनल कंप्यूटर में ये सुविधायें होती | अगर मैंने कभी कॉलेज नही छोड़ा और यह केलिग्राफी की क्लासेज नहीं की होती,तो शायद ही पर्सनल कंप्यूटर में इस तरह की टाइपोग्राफी होती |बिलकुल, जब में कॉलेज में था तब इन डॉट्स को कलेक्ट करके जोड़ना मेरे लिए इम्पोसिबल था लेकिन अब दस साल पीछे मुड़कर देखने पर यह साफ़-साफ़ दिखाई देता हैं |
फिर से, तुम आगे देखते हुये डॉट्स को कनेक्ट नहीं कर सकते,तुम केवल पीछे देखकर ही यह कर सकते हो इसलिये तुम्हे यह विश्वास रखना होगा कि यह डॉट्स आगे जाकर कैसे भी जुड़ जायेंगे |तुम्हे किसी पर भी विश्वास करना होगा अपनी हिम्मत, भाग्य, जीवन,कर्म जिस पर भी करना हो |इस तरीके ने मुझे कभी निचे नहीं दिखाया बल्कि मेरे जीवन को बना दिया |
मेरी दूसरी कहानी प्रेम और खोने के बारे में हैं :
मैं बहुत भाग्यशाली था जिन्दगी में मुझे जो पसंद था वो जल्दी ही मिल गया | Woz और मैने मेरे माता पिता के गेराज में Apple को शुरू किया जब मैं 20 वर्ष का था | हमने कड़ी मेहनत की और दस साल में Apple ने ऐसी उन्नति की कि हम दो लोगो के गेराज से $2 बिलियन की कंपनी में चार हजार एम्प्लोयी हो गये | हमने हमारा सबसे अच्छा क्रिएशन Macintosh रिलीज़ ही किया और मैंने 30 वर्ष में कदम ही रखा था कि मैं कंपनी से निकाल दिया गया |तुम कैसे उस कंपनी से  निकाले जा सकते हो जिसे तुमने ही लांच किया हो ? जैसे ही Apple ने उन्नति की हमने एक एम्प्लोयी हायर किया जो कि मैंने सोचा बहुत टैलेंटेड हैं और हमारे साथ कंपनी की उन्नति के लिये कार्य करेगा और पहला साल तो बहुत अच्छा बिता | लेकिन हमारा अपनी उन्नति को देखा गया दृश्य अचानक ही नीचे जाने लगा | उस वक्त बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर ने उसीका साथ दिया और मुझे कंपनी से निकाल दिया गया सार्वजनिक रूप से बाहर निकाल दिया गया |मेरे जीवन का फोकस जिस पर था वो पूरी तरह से खत्म हो चूका था  |
मुझे वास्तव में कुछ महीनों तक नहीं पता था कि मुझे क्या करना हैं ?मैंने महसूस किया कि मैंने पिछले उद्द्यमियों को निचा दिखाया हैं | मैं David Packard और Bob Noyce से मिला और मैंने उनसे मेरे किये की माफ़ी भी मांगी | मैं एक बहुत बड़ा पब्लिक फैलियर था मैंने यहाँ तक सोच लिया की मैं अपनी घाटी छोड़ दू लेकिन कोई चीज मुझे जगा रही थी वो था मेरा काम जो मुझे आज भी आता था Apple में जो कुछ भी हुआ था उसने मुझे बिलकुल भी नहीं बदला था | मैं रिजेक्ट किया गया था लेकिन मैं अब तक प्यार करता था और मैंने फिर से शुरू करने का निर्णय लिया | मैंने नही सोचा था कि मुझे Apple से बाहर निकालना मेरे लिए एक अच्छी बात साबित हुई | मेरा जीवन सफलता के दबाव से फिर से एक शुरुवाती व्यक्ति के हल्केपन में बदल चूका था जिसमे मैं किसी भी चीज के लिए दृढ नहीं था इसने मुझे मेरी लाइफ के सबसे क्रिएटिव पीरियड में जाने के लिए फ्री कर दिया |
अगले पांच वर्षो के दौरान मैंने NeXT नाम की कंपनी की शुरुवात की मेरी दूसरी कंपनी का नाम Pixar था और मैं एक बहुत अच्छी वुमन के प्यार में पड़ गया जिससे बाद में मेरी पत्नी बनी |Pixar ने सबसे पहली कंप्यूटर एनिमेटेड फिल्म बनाई और आज यह दुनियां का सबसे सफल animation studio हैं | सबसे उल्लेखनीय घटना घटी जिसमे Apple ने NeXT को ख़रीदा और मैं फिर से Apple का हिस्सा बना जो तकनिकी हमने NeXT में बनाई वो आज Apple में काम लाइ जा रही हैं जो कि उसका हृदय स्थल में हैं | मैं और Laurene हमारी एक वंडरफुल फॅमिली हैं |
मैं इस बात से सहमत हूँ कि अगर मैं Apple से निकाला नहीं गया होता तो मुझे यह मुकाम नहीं मिलता | यह दवाई भयानक हैं पर मैं सोचता हूँ कि हर मरीज को इसकी जरुरत हैं | कभी-कभी जिन्दगी दिमाग में ईंट से वार करती हैं | अपना विश्वास नहीं खोये | मैं बस एक ही बात से आश्वत था कि मैं आगे बढ़ रहा हूँ क्यूंकि मैं अपने काम से प्यार करता हूँ आप सभी के लिए यह जानना निहायत जरुरी हैं कि आप क्या करना पसंद करते हैं यह जानना उतना ही जरुरी हैं जितना कि जीवन में प्यार को पहचानना हैं | यदि आप यह नही जान पाए हैं तो ढूंढते रहिये जब तक रुके नही |
मेरी तीसरी कहानी मृत्यु के बारे में हैं 
मैं जब 17 का था तब मैंने पढ़ा “जीवन के सभी दिनों को ऐसे जियो जैसे आखरी दिन हो |अगर आप ऐसे रहते तो खुद को एक दिन साबित कर देंगे” | इस बात ने मेरे दिमाग में छाप छोड़ दी थी | तब से जीवन के 33 सालो तक रोज सुबह आईने में देखकर खुद से सवाल किया यदि आज मेरा आखरी दिन हैं तो मैं आज क्या करना चाहूँगा जो मैं करना चाहता हूँ वही ? लेकिन जवाब ना में मिलता था तब मैं समझ जाता था कि अभी भी कुछ बदलने की जरुरत हैं |
यह याद रखना कि मैं बहुत जल्दी ही मर जाऊंगा यह एक बहुत बड़ा हथियार था जो मुझे जिन्दगी में बेहतर चुनने में मदद करता था |क्यूंकि जब भी मृत्यु के बारे में सोचता हूँ तो मेरा बाहरी दिखावा, घमंड, डर, अपमान सभी शुन्य हो जाते हैं और जो सच हैं मैं उसे महसूस करने लगता हूँ | एक बार यह सोच लेना कि हमें मरना हैं आपको जीवन के हर दुःख से दूर कर देता हैं खोने का कोई डर नहीं रह जाता क्यूंकि आप पहले से ही नंगे हो | ऐसी कोई विपदा नहीं होती कि आप दिल की ना सुन सको |
लगभग एक वर्ष पहले मुझे पता चला कि मुझे कैंसर हैं | यह मुझे दिन के 7:30 पर पता चला साफ़ दिखाई दे रहा था कि मेरे अग्नाशय में एक ट्यूमर हैं लेकिन मुझे यहाँ तक पता नहीं था कि अग्नाशय होता क्या हैं | तब डॉक्टर ने बताया कि मुझे कैंसर हैं जिसका ठीक होना लगभग नामुमकिन हैं और मैं ज्यादा से ज्यादा 3 या 6 महीने तक जीवित हूँ | मेरे डॉक्टर ने मुझसे कहा कि मैं घर जाऊ और अपने सभी मामले व्यवस्थित करूँ एक तरह से वो मुझे मृत्यु के लिए तैयार होने को कह रहे थे | जिसका मतलब यही था कि अपने बच्चो से यह कह दे कि आप अगले 10 वर्ष में क्या करना चाहते हैं वो भी कुछ महीने में | इसका मतलब यह था कि आप अपनी फॅमिली को ऐसे तैयार कर दीजिये कि उन्हें तकलीफ कम हो | इसका मतलब यह था कि आप गुड बाय कह दीजिये |
मै पूरा दिन डायग्नोसिस करवाता रहा उसके बाद शाम में मेरी बायऑप्सी हुई तब एक निडिल मेरे गले से डाली गई जो पेट से होती हुई मेरी आंत में पहुंची और मेरे अग्नाशय से निडिल के जरिये कुछ सेल ली गई मैं बेहोश था लेकिन मेरी पत्नी वहाँ थी उसने मुझे बताया कि जब डॉक्टर ने माइक्रोस्कोप से सेल को देखा तो वे रो पड़े क्यूंकि अग्नाशय का कैंसर ऐसे दुर्लभ रूप में परिवर्तित हो चूका था जो कि शल्यचिकित्सा के जरिये ठीक हो सकता था मैंने शल्यक्रिया ली और मैं आज बिलकुल दुरुस्त हूँ |
मैंने बहुत करीब से मौत को देखा जो कि पहली बार था और उम्मीद हैं कि अगले कुछ वर्षो तक मैं मौत के इतना करीब नहीं पहुचुंगा | अब मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि मौत एक ऐसा उपयोगी बोद्धिक अवधारणा हैं |
कोई भी मरना नहीं चाहता | यहाँ तक कि जो लोग स्वर्ग चाहते हैं वो भी उसे पाने के लिए मरना नहीं चाहते | मृत्यु एक ऐसा पड़ाव हैं जिसे सभी शेयर करते हैं कोई भी इससे छुट नही सकता | ऐसा होना भी चाहिए क्यूंकि मृत्यु ही जीवन का सबसे बड़ा आविष्कार हैं | यह जिन्दगी के बदलने का जरिया हैं यह पुराने से बाहर कर नये रास्ते खोलती हैं | फ़िलहाल तुम नये हो लेकिन किसी दिन तुम पुराने हो जाओगे आज से ज्यादा दूर नहीं  तुम धीरे-धीरे वृद्ध हो जाओगे जो आगे जाकर तुम्हे साफ़ हो जायेगा |इतना नाटकीय होने के लिए माफ़ी चाहता हूँ पर यह सत्य हैं |
आपका समय सिमित हैं इसलिए उसे किसी और की जिन्दगी में व्यर्थ न गंवायें | हठधर्मिता में मत पड़ो | दुसरो की सोच के आधार पर मत जियो | दुसरो के विचार के शोर में मत पड़ो अपने अंदर की आवाज सुनो |और सबसे ज्यादा जरुरी अपने भीतर की आवाज को सुने अपने दिल को सुने | वे बहुत अच्छे से जानता हैं कि तुम्हे क्या बनाना हैं बाकि सब बाते द्वितीय स्थान पर होती हैं |
जब मैं जवान था जब एक बहुत ही अद्भुत प्रकाशन The Whole Earth Catalogue था जो मेरे समय में एक बाइबिल की तरह था जिसे Stewart Brand ने रचा था जो यहाँ Menlo Park से ज्यादा दूर नहीं रहते थे इन्होने इसमें कविताओं का सुंदर समावेश कर इसे अद्भुत बना दिया था | यह बात 1960 के आखरी समय की हैं जब कंप्यूटर से पब्लिकेशन नहीं होता था | इस प्रकार सब कुछ टाइप राइटर आदि की मदद से किया गया वह बहुत कुछ गूगल बुक की तरह बनाया गया था वो भी गूगल के आने से 35 साल पहले | यह एक अच्छे टूल की बेहतरीन कल्पना थी |
Stewart ने The Whole Earth Catalog की कई प्रतियाँ निकाली बाद में एक फाइनल प्रति निकाली गई यह 1970 के मध्य की बात हैं जब मैं तुम्हारी उम्र का था |फाइनल प्रति के अंतिम पृष्ठ पर बने चित्र में कंट्री की सुबह और खाली रोड का दृश्य हैं जहाँ निचे लिखा हुआ था Stay Hungry, Stay Foolish | यह उनका दीक्षांत संदेश था जिससे उन्होंने साइन ऑफ किया | और मैं भी आप सभी को शुभकामनाये देते हुए कहता हूँ Stay Hungry, Stay Foolish थैंक यू |

हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ ?

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  04:08
हनुमान रामायण कथा के सबसे अहम् पात्र कहे जाते हैं | हनुमान जो कि पवनपुत्र कहे जाते हैं श्री राम के सेवक थे जिन्होंने आजीवन अपने स्वामी श्री राम का साथ निभाया | और अपने सेवक धर्म की मिसाल कायम की |हनुमान जी ने स्वयम श्री राम के संकट हरे थे इसलिये इन्हें संकट मोचन महाबली हनुमान कहा जाता हैं |

हम सभी जानते हैं कि हनुमान ब्रह्मचारी थे लेकिन कथाओं में कई तथ्यों में पाया गया हैं कि हनुमान जी का एक पुत्र था जिसका नाम मकरध्वज था जिसकी माता एक मछली थी | और मकरध्वज भी हनुमान की तरह वानर और अति बलशाली था |  कैसे बने हनुमान मकरध्वज के पिता ? क्यूँ हुआ हनुमान का अपने ही पुत्र से युद्ध ? एवम शक्ति में समान होते हुए दोनों में से कौन जीता वह युद्ध ? जाने विस्तार से :

हनुमान के पुत्र मकरध्वज का जन्म कैसे हुआ ?

Hanuman Ka Putra Makardhwaj

वनवास काल के दौरान जब  रावण सीता का अपहरण कर लेता हैं, तब सीता की खोज में श्री राम की मुलाकात हनुमान जी से होती हैं | और वे सीता के खो जाने की कथा हनुमान को सुनाते हैं | तब हनुमान और उनके सखा सुग्रीव और उसकी वानर सेना सीता की खोज में श्री राम एवम लक्ष्मण की मदद करते हैं | बहुत प्रयासो के बाद जब श्री राम और उनके साथियों को यह पता चलता हैं कि सीता का अपहरण लंका पति रावण ने किया हैं | तब वे हनुमान को समुद्र पार सीता की खोज में भेजते हैं | हनुमान मायावी थे वे अपनी शक्ति की सहायता से आकाश मार्ग से लंका पहुँचते हैं और लंका की अशोक वाटिका में बैठी सीता से मुलाकात करते हैं जिसके लिए वे सीता को श्री राम के दूत होने के प्रमाण के रूप में श्री राम द्वारा दी हुई मुद्रिका दिखाते हैं जिसे देखते ही सीता समझ जाती हैं और उन्हें यकीन हो जाता हैं कि उनके पति श्री राम उन्हें लेने आ चुके हैं | हनुमान सीता की खबर लेने के बाद अशोक वाटिका में लगे वृक्षों के फल खाकर अपना पेट भरते हैं | और पूरी अशोक वाटिका को उजाड़ देते हैं | तब रावण के सेना के राक्षस हनुमान से युद्ध करते हैं लेकिन कोई उन्हें पकड़ नहीं पाता | तब उन्हें रावण का पुत्र मेघनाद पकड़ने जाता हैं और पकड़ कर दरबार में रावण के सामने बंधी बनाकर लाता हैं | तब हनुमान को सभा में बैठने के लिये स्थान नहीं दिया जाता इसलिए वे अपनी पूंछ का सिंहासन बनाकर बैठ जाते हैं | उनके ऐसे उपद्रव के कारण रावण उनकी पूँछ में आग लगाने का हुक्म देते हैं और सभी सेना मिलकर बड़ी जद्दोजहद के बाद हनुमान की पूंछ में आग लगाते हैं जिसके बाद हनुमान किसी के काबू में नहीं आते और उड़-उड़ कर सारी लंका में आग लगा देते हैं | अंत में वे अपनी पूछ में लगी आग को बुझाने के लिये समुद्र में जाते हैं और उसे समय ताप के कारण उनके शरीर से बहता पसीना समुद्र में जाता हैं जो कि एक मछली के पेट में चला जाता हैं और उससे मछली गर्भ धारण कर लेती हैं |
कुछ समय बाद उस मछली को पाताल के राजा अहिरावन के सैनिको द्वारा पकड़ा जाता हैं और उसे काटने पर उन्हें वानर के रूप में एक शिशु मिलता हैं जो कि बड़ा बलवान होता हैं जिसका नाम मकरध्वज रखा जाता हैं | उसे पाताल के राजा अहिरावण के द्वारा पाताल का द्वारपाल बना दिया जाता हैं |
कुछ समय बाद जब राम और रावण के बीच युद्ध चलता रहता हैं | तब रावण अपने दूर के भाई अहिरावन से सहायता मांगता हैं और योजना बनाता हैं जिसके फलस्वरूप अहिरावन राम और लक्षमण को पाताल में ले जाकर बंदी बना लेता हैं | उन्हें पाताल से छुड़ाने हनुमान जी जब पाताल पहुँचते हैं | तब उनकी भेंट उनके पुत्र मकरध्वज से होती हैं | हनुमान को भी इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं होता तब वे वानर रूपी द्वारपाल को देख उससे उसका परिचय पूछते हैं तब मकरध्वज कहता हैं मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूँ | तब हनुमान कहते हैं कि मैं हनुमान हूँ और में ब्रह्मचारी हूँ फिर तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो | तब मकरध्वज हनुमान को सारी कथा विस्तार से बताता है और हनुमान को यकीन हो जाता हैं | इसके बाद हनुमान मकरध्वज से पाताल में आने के लिये द्वार से हटने को बोलते हैं तब मकरध्वज उन्हें मना कर देता हैं कि वो भी अपने स्वामी का भक्त हैं अपने धर्म से पीछे नहीं हट सकता | तब उन दोनों पिता पुत्र में युद्ध होता हैं जिसमे हनुमान जीत जाते हैं और पाताल में प्रवेश करते हैं | उसके बाद वे अहिरावण एवम महिरावण दोनों भाइयों से युद्ध कर उन्हें परास्त कर देते हैं | और श्री राम एवम लक्षमण को मुक्त करवाते हैं | हनुमान अपने पुत्र को श्री राम से मिलवाते हैं | श्री राम मकरध्वज को आशीर्वाद देते है और वे मकरध्वज को पाताल का राजा नियुक्त करते हैं | इस प्रकार हनुमान जी का पुत्र मकरध्वज पताल का राजा बनता हैं |
गुजरात प्रान्त में हनुमान के पुत्र मकरध्वज की पूजा की जाती हैं | यह भी कहा जाता हैं मकरध्वज का भी एक पुत्र था जिसका नाम जेठीध्वाज था | मकरध्वज हनुमान के समान ही बलशाली था इसलिये उसे हरान हनुमान जी के लिए भी बहुत आसान नहीं था और वे अपने पिता के समान ही महान सेवक था इसलिये अपने पिता के आदेश पर भी वो द्वार से नहीं हटता और जमकर महाबलशाली हनुमान से युद्ध करता हैं |
इस कथा का विस्तार रामायण की कथा में महर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा किया गया हैं | सभी को इस बात में संदेह लगता हैं इसलिये यह कथा आपके सामने रखी गई हैं | यह भी प्रचलति हैं कि भारत के किसी शहर में हनुमान जी की पत्नी का मंदिर हैं इसके बारे में विस्तार से जानने के बाद हम आपको जरुर बताएँगे |
भारत देश में कई पौराणिक कथायें हैं जिनमे रामायण का स्थान बहुत उच्च माना जाता हैं इसमें कर्तव्य के भाव को बहुत सुंदर तरीके से बताया गया हैं जैसे पुत्र का कर्तव्य, पत्नी का कर्तव्य, भाई का कर्तव्य, सेवक का कर्तव्य एवम मित्र का कर्तव्य | सभी पक्षों को भलीभांति रूप से दिखाया गया हैं |

अनुभव की कंघी

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  04:00

कहानी अनुभव की कंघी

रामधन नाम का एक पुराना व्यपारी था जो अपनी व्यापारी समझ के कारण दोनों हाथो से कमा रहा था | उसको कोई भी टक्कर नहीं दे सकता था | वो दूर-दूर से अनाज लाकर उसे शहर में बेचता था उसे बहुत सा लाभ होता था | वो अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश था | इसलिये उसने सोचा व्यापार बढ़ाना चाहिये और उसने पड़ौसी राज्य में जाकर व्यापार करने की सोची |

दुसरे राज्य जाने के रास्ते का मानचित्र देखा गया जिसमे साफ-साफ था कि रास्ते में एक बहुत बड़ा मरुस्थल हैं | खबरों के अनुसार उस स्थान पर कई लुटेरे भी हैं | लेकिन बूढा व्यापारी कई सपने देख चूका था | उस पर दुसरे राज्य में जाकर धन कमाने की इच्छा प्रबल थी | उसने अपने कई किसान साथियों को लेकर प्रस्थान करने की ठान ली | बैलगाड़ियाँ तैयार की और उस पर अनाज लादा |इतना सारा माल था जैसे कोई राजा की शाही सवारी हो |
बूढ़े राम धन की टोली में कई लोग थे जिसमे जवान युवक भी थे और वृद्ध अनुभवी लोग,जो बरसो से राम धन के साथ काम कर रहे थे | जवानो के अनुसार अगर इस टोली का नेत्रत्व कोई नव युवक करता तो अच्छा होता क्यंकि यह वृद्ध रामधन तो धीरे-धीरे जायेगा और पता नही उस मरुस्थल में क्या-क्या देखना पड़ेगा |
तब कुछ नौ जवानो ने मिलकर अपनी अलग टोली बना ली और स्वयम का माल ले जाकर दुसरे राज्य में जाकर व्यापार करने की ठानी | रामधन को उसके चहेते लोगो ने इस बात की सुचना दी | तब राम धन ने कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाई उसने कहा भाई सबको अपना फैसला लेने का हक़ हैं | अगर वो मेरे इस काम को छोड़ अपना शुरू करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं | और भी जो उनके साथ जाना चाहता हो जा सकता हैं |
अब दो अलग व्यापारियों की टोली बन चुकी थी जिसमे एक का नेत्रत्व वृद्ध रामधन कर रहे थे और दुसरे का नेत्रत्व नव युवक गणपत कर रहे थे | दोनों की टोली में वृद्ध एवम नौ जवान दोनों सवार थे |
सफ़र शुरू हुआ | रामधन और गणपत अपनी अपनी टोली लेकर चल पड़े | थोड़ी दूर सब साथ –साथ ही चल रहे थे कि जवानो की टोली तेजी से आगे निकल पड़ी और रामधन और उनके साथी पीछे रह गये | रामधन की टोली के नौजवान इस धीमी गति से बिलकुल खुश नहीं थे और बार-बार रामधन को कौस रहे थे,कहते कि वो नौ जवानो की टोली तो कब की नगर की सीमा लाँघ चुकी होगी और कुछ ही दिनों में मरुस्थल भी पार कर लेगी | और हम सभी इस बूढ़े के कारण भूखे मर जायेंगे |
धीरे-धीरे रामधन की टोली नगर की सीमा पार करके मरुस्थल के समीप पहुँच जाती हैं |तब रामधन सभी से कहते हैं यह मरुस्थल बहुत लंबा हैं और इसमें दूर दूर तक पानी की एक बूंद भी नहीं मिलेगी, इसलिये जितना हो सके पानी भर लो | और सबसे अहम् यह मरुस्थल लुटेरे और डाकुओं से भरा हुआ हैं इसलिये हमें यहाँ का सफ़र बिना रुके करना होगा | साथ ही हर समय चौकन्ना रहना होगा |
उन्हें मरुस्थल के पहले तक बहुत से पानी के गड्ढे मिल जाते हैं जिससे वे बहुत सारा पानी संग्रह कर लेते हैं | तब उन में से एक पूछता हैं कि इस रास्ते में पहले से ही इतने पानी के गड्ढे हैं,हमें एक भी गड्ढा तैयार नहीं करना पड़ा | तब रामधन मूंछो पर ताव देकर बोलते हैं इसलिए तो मैंने नव जवानों की उस टोली को आगे जाने दिया | यह सभी उन लोगो ने खुद के लिए तैयार किया होगा जिसका लाभ हम सभी को मिल रहा हैं | यह सुनकर कर टोली के विरोधी साथी खिजवा जाते हैं | और अन्य, रामधन के अनुभव की प्रशंसा करने लगते हैं | सभी रामधन के कहे अनुसार बंदोबस्त करके और आराम करके आगे बढ़ते हैं |
आगे बढ़ते हुए राम धन सभी को आगाह कर देता हैं कि अब हम सभी मरुस्थल में प्रवेश करने वाले हैं | जहाँ ना तो पानी मिलेगा, ना खाने को फल और ना ही ठहरने का स्थान और यह बहुत लम्बा भी हैं | हमें कई दिन भी लग सकते हैं | सभी रामधन की बात में हामी मिलाते हुए उसके पीछे हो लेते हैं |
अब वे सभी मरुस्थल में प्रवेश कर चुके थे | जहाँ बहुत ज्यादा गर्मी थी जैसे अलाव लिये चल रहे हो |आगे चलते-चलते उन्हें सामने से कुछ लोग आते दिखाई देते हैं | वे सभी रामधन को प्रणाम करते हैं और हाल चाल पूछते हैं | उन में से एक कहता हैं आप सभी व्यापारी लगते हो, काफी दूर से चले आ रहे हो, अगर कोई सेवा का अवसर देंगे तो हम सभी तत्पर हैं | उसकी बाते सुन रामधन हाथ जोड़कर कह देता हैं कि भाई हम सभी भले चंगे हैं, तुम्हारा धन्यवाद जो तुम सभी ने इतना सोचा | और वे अपने साथियों को लेकर आगे बढ़ जाते हैं | आगे बढ़ते ही टोली के कुछ नव युवक फिर से रामधन को कौसने लगते हैं कि जब वे लोग हमारी सहायता कर रहे हैं तो इस वृद्ध रामधन को क्या परेशानी हैं ?
कुछ दूर चलने के बाद फिर से कुछ लोग सामने से आते दिखाई देते हैं जिनके वस्त्र गिले थे और वे रामधन और उसके साथियों को कहते हैं कि आप सभी राहगीर लगते हो और इस मरुस्थल के सफर से थके लग रहे हो | अगर आप चाहो तो हम आपको पास के एक जंगल में ले चलते हैं | जहाँ बहुत पानी और खाने को फल हैं | साथ ही अभी वहाँ पर तेज बारिश भी हो रही हैं | उसी में हम सभी भीग गये थे | अगर आप सभी चाहे तो अपना सारा पानी फेक कर जंगल से नया पानी भर ले और पेट भर खाकर आराम कर ले | लेकिन रामधन साफ़ ना बोल कर अपने साथियों से जल्दी चलने को कह देते हैं |
अब टोली के कई नौ जवानो को रामधन पर बहुत गुस्सा आता हैं और वे उसके समीप आकर अपना सारा गुस्सा निकाल देते हैं और पूछते हैं कि क्यूँ वे उन भले लोगो की बात नहीं सुन रहे और क्यूँ हम सभी पर जुल्म कर रहे हैं | तब रामधन मुस्कुराते हुए कहते हैं कि वे सभी लुटेरे हैं और हमसे अपना पानी फिकवा कर हमें निसहाय करके लुट लेना चाहते हैं और हमें यही मरने छोड़ देना चाहते हैं | तब वे नव युवक गुस्से में दांत पिसते हुये कहते हैं कि सेठ जी तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता हैं ? तब रामधन कहते हैं कि तुम खुद देखो, इस मरुस्थल में कितनी गर्मी हैं, क्या यहाँ आसपास कोई जंगल हो भी सकता हैं ,यहाँ की भूमि इतनी सुखी हैं कि दूर दूर तक बारिश ना होने का संकेत देती हैं | यहाँ एक परिंदे का घौसला तक नहीं तो फल फुल कैसे हो सकते हैं | और जरा निगाह उठाकर ऊपर देखो दूर-दूर तक कोई बारिश के बादल नहीं हैं, ना ही हवा में बारिश की ठंडक हैं, ना ही गीली मिटटी की खुशबु,तो कैसे उन लोगो की बातों पर यकीन किया जा सकता हैं ? मेरी बात मानो कुछ भी हो जाये अपना पानी मत फेंकना और ना ही कहीं भी रुकना |
कुछ देर आगे चलने के बाद उन्हें रास्ते में कई नरकंकाल और टूटी फूटी बैलगाड़ी मिलती हैं | वे सभी कंकाल गणपत की टोली के लोगो के थे | उन में से एक भी नहीं बचा था | उनकी ऐसी दशा देख सभी रोने लगते हैं क्यूंकि वे सभी उन्ही के साथी थे | तब रामधन कहते हैं कि जरुर इन लोगो ने तुम्हारे जैसे ही इन लुटेरो को अपना साथी समझा होगा और इसका परिणाम यह हुआ, आज उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा | रामधन सभी को ढाढस बंधाते हुये कहते हैं हम सभी को भी यहाँ से जल्दी निकलना होगा क्यूंकि वे सभी लुटेरे अभी भी हमारे पीछे हैं | प्रार्थना करो कि हम सभी सही सलामत यहाँ से निकल जाये |

शिक्षा :

कहते अनुभव की कंघी (Anubhav Ki Kanghi)जब काम आती हैं जब सर पर कोई बाल नहीं बचता अर्थात अनुभव उम्र बीतने और जीवन जीने के बाद ही मिलता हैं | अनुभव कभी भी पूर्वजो की जागीर में नहीं मिलता | जैसे इस कहानी में नव जवानो में जोश तो बहुत था लेकिन अनुभव की कंघी नहीं थी जो कि रामधन के पास थी जिसका उसने सही समय पर इस्तेमाल किया और विपत्ति से सभी को निकाल कर ले गया |शिक्षा यही हैं कि किसी काम को करने के लिये जोश के साथ अनुभव होना भी अत्यंत आवश्यक हैं |

सीख जो जीवन बदल दे

by Amar Ujala Now  |  in कहानिया at  03:55
एक राजा था जिसका नाम रामधन था उनके जीवन में सभी सुख थे | राज्य का काम काज भी ऐशो आराम से चल रहे था | राजा के नैतिक गुणों के कारण प्रजा भी बहुत प्रसन्न थी | और जिस राज्य में प्रजा खुश रहती हैं वहाँ की आर्थिक व्यवस्था भी दुरुस्त होती हैं इस प्रकार हर क्षेत्र में राज्य का प्रवाह अच्छा था |

इतने सुखों के बाद भी राजा दुखी था क्यूंकि उसकी कोई संतान नहीं थी यह गम राजा को अंदर ही अंदर सताता रहता था | प्रजा को भी इस बात का बहुत दुःख था | वर्षों के बाद राजा की यह मुराद पूरी हुई और उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई | पुरे नगर में कई दिनों तक जश्न मना | नागरिको को राज महल में दावत दी गई | राजा की इस ख़ुशी में प्रजा भी झूम रही थी |
समय बितता जा रहा था राज कुमार का नाम नंदनसिंह रखा गया | पूजा पाठ एवम इन्तजार के बाद राजा को सन्तान प्राप्त हुई थी इसलिये उसे बड़े लाड़ प्यार से रखा जाता था लेकिन अति किसी बात की अच्छी नहीं होती अधिक लाड़ ने नंदन सिंह को बहुत बिगाड़ दिया था | बचपन में तो नंदन की सभी बाते दिल को लुभाती थी पर बड़े होते होते यही बाते बत्तमीजी लगने लगती हैं | नंदन बहुत ज्यादा जिद्दी हो गया था उसके मन में अहंकार आ गया था वो चाहता था कि प्रजा सदैव उसकी जय जयकार करे उसकी प्रशंसा करें | उसकी बात ना सुनने पर वो कोलाहल मचा देता था | बैचारे सैनिको को तो वो पैर की जुती ही समझता था | आये दिन उसका प्रकोप प्रजा पर उतरने लगा था | वो खुद को भगवान के समान पूजता देखना चाहता था | आयु तो बहुत कम थी लेकिन अहम् कई गुना बढ़ चूका था |
नन्दन के इस व्यवहार से सभी बहुत दुखी थे | प्रजा आये दिन दरबार में नन्दन की शिकायत लेकर आती थी जिसके कारण राजा का सिर लज्जा से झुक जाता था | यह एक गंभीर विषय बन चूका था |
एक दिन राजा ने सभी खास दरबारियों एवम मंत्रियों की सभा बुलवाई और उनसे अपने दिल की बात कही कि वे राज कुमार के इस व्यवहार से अत्यंत दुखी हैं , राज कुमार इस राज्य का भविष्य हैं अगर उनका व्यवहार यही रहा तो राज्य की खुशहाली चंद दिनों में ही जाती रहेगी | दरबारी राजा को सांत्वना देते हैं और कहते हैं कि आप हिम्मत रखे वरना प्रजा निसहाय हो जायेगी | मंत्री ने सुझाव दिया कि राजकुमार को एक उचित मार्गदर्शन एवम सामान्य जीवन के अनुभव की जरुरत हैं | आप उन्हें गुरु राधागुप्त के आश्रम भेज दीजिये सुना हैं,वहाँ से जानवर भी इंसान बनकर निकलता हैं | यह बात राजा को पसंद आई और उसने नन्दन को गुरु जी के आश्रम भेजा |
अगले दिन राजा अपने पुत्र के साथ गुरु जी के आश्रम पहुँचे | राजा ने गुरु राधा गुप्त के साथ अकेले में बात की और नन्दन के विषय में सारी बाते कही | गुरु जी ने राजा को आश्वस्त किया कि वे जब अपने पुत्र से मिलेंगे तब उन्हें गर्व महसूस होगा | गुरु जी के ऐसे शब्द सुनकर राजा को शांति महसूस हुई और वे सहर्ष अपने पुत्र को आश्रम में छोड़ कर राज महल लौट गये |
अगले दिन सुबह गुरु के खास चेले द्वारा नंदन को भिक्षा मांग कर खाने को कहा गया जिसे सुनकर नंदन ने साफ़ इनकार कर दिया | चेले ने उसे कह दिया कि अगर पेट भरना हैं तो भिक्षा मांगनी होगी और भिक्षा का समय शाम तक ही हैं अन्यथा भूखा रहना पड़ेगा | नंदन ने अपनी अकड़ में चेले की बात नहीं मानी और शाम होते होते उसे भूख लगने लगी लेकिन उसे खाने को नहीं मिला | दुसरे दिन उसने भिक्षा मांगना शुरू किया | शुरुवात में उसके बोल के कारण उसे कोई भिक्षा नहीं देता था लेकिन गुरुकुल में सभी के साथ बैठने पर उसे आधा पेट भोजन मिल जाता था | धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा और करीब एक महीने बाद नंदन को भर पेट भोजन मिला जिसके बाद उसके व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आये |
इसी तरह गुरुकुल के सभी नियमों ने राजकुमार में बहुत से परिवर्तन किये जिसे राधा गुप्त जी भी समझ रहे थे एक दिन राधा गुप्त जी ने नंदन को अपने साथ सुबह सवेरे सैर पर चलने कहा |दोनों सैर पर निकल गये रास्ते भर बहुत बाते की | गुरु जी ने नंदन से कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान हो और तुममे बहुत अधिक उर्जा हैं जिसका तुम्हे सही दिशा मे उपयोग करना आना चाहिये | दोनों चलते-चलते एक सुंदर बाग़ में पहुँच गये | जहाँ बहुत सुंदर-सुंदर फूल थे जिनसे बाग़ महक रहा था | गुरु जी ने नंदन को बाग़ से पूजा के लिये गुलाब के फुल तोड़ने कहा | नंदन झट से सुंदर-सुंदर गुलाब तोड़ लाया और अपने गुरु के सामने रख दिये | अब गुरु जी ने उसे नीम के पत्ते तोड़कर लाने कहा | नंदन वो भी ले आया | अब गुरु जी ने उसे एक गुलाब सूंघने दिया और कहा बताओ कैसा लगता हैं नंदन ने गुलाब सुंघा और गुलाब की बहुत तारीफ की | फिर गुरु जी उसे नीम के पत्ते चखकर उसके बारे में कहने को कहा | जैसे ही नंदन ने नीम के पत्ते खाये उसका मुंह कड़वा हो गया और उसने उसकी बहुत निंदा की | और जतर क़तर पीने का पानी ढूंढने लगा |
नन्दन की यह दशा देख गुरु जी मुस्कुरा रहे थे | पानी पिने के बाद नंदन को राहत मिली फिर उसने गुरु जी से हँसने का कारण पूछा | तब गुरु जी ने उससे कहा कि जब तुमने गुलाब का फुल सुंघा तो तुम्हे उसकी खुशबू बहुत अच्छी लगी और तुमने उसकी तारीफ की लेकिन जब तुमने नीम की पत्तियाँ खाई तो तुम्हे वो कड़वी लगी और तुमने उसे थूक दिया और उसकी निंदा भी की | गुरु जी से नन्दन को समझाया जिस प्रकार तुम्हे जो अच्छा लगता हैं तुम उसकी तारीफ करते हो उसी प्रकार प्रजा भी जिसमे गुण होते हैं उसकी प्रशंसा करती हैं अगर तुम उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे और उनसे प्रशंसा की उम्मीद करोगे तो वे यह कभी दिल से नही कर पायेंगे | इस प्रकार जहाँ गुण होते हैं वहाँ प्रशंसा होती हैं |
नंदन को सभी बाते विस्तार से समझ आ जाती हैं और वो अपने महल लौट जाता हैं | नंदन में बहुत परिवर्तन आता हैं और वो बाद में एक सफल राजा बनता हैं |

कहानी की शिक्षा

गुरु की सीख ने नंदन का जीवन ही बदल दिया वो एक क्रूर राज कुमार से एक न्याय प्रिय दयालु राजा बन गया |इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती हैं कि हममे गुण होंगे तो लोग हमें हमेशा पसंद करेंगे लेकिन अगर हम अवगुणी हैं तो हमें प्रशंसा कभी नहीं मिल सकती |

क्रिसमस डे निबंध इतिहास शायरी एवम कहानी

by Amar Ujala Now  |  in निबंध at  02:03
Christmas day Nibandh History Tree Shayari Speech Hindi क्रिसमस डे निबंध इतिहास शायरी एवम कहानी पढ़े जो आपको जानने में मदद करेगी दुनियाँ में जितने भी त्यौहार मनाये जाते हैं उनका मक्सद केवल प्रेम हैं | एकता को बनाये रखने के लिए ही त्यौहार शुरू किये गये लेकिन आज हम सभी वास्तविक्ता से बहुत दूर आपसी बैर में एकता को खत्म कर रहे हैं |

Merry Christmas day Nibandh 

क्रिसमस डे निबंध महत्व 

क्रिसमस डे (Christmas Day) दूनियाँ में सर्वाधिक मनाये जाने वाले त्यौहारों में से एक हैं | यह ईसाई धर्म का विशेष फेस्टिवल हैं | इस दिन गॉड ईसा मसीह का जन्म हुआ था | इस फेस्टिवल को क्रिश्चियन समुदाय के लोग पुरे उत्साह से मनाते हैं |इस दिन पुरे वर्ल्ड में छुट्टी होती हैं | सभी त्यौहार प्रेम और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए मनाये जाते हैं | इनमे क्रिसमस डे का भी यही उद्देश्य हैं | खासतौर पर बच्चों में प्रेम और ईश्वर के प्रति आस्था बनाये रखने के लिए इस दिन कई प्रकार के आयोजन किये जाते हैं |
  • Christmas Day Date

कब मनाया जाता हैं क्रिसमस डे

यह दिन 25 दिसम्बर के दिन मनाया जाता हैं | इसे बड़ा दिन कहा जाता हैं | माना जाता हैं इस दिन ईसा मसीहा का जन्म हुआ था जो कि क्रिश्चियन समुदाय के भगवान कहे जाते हैं |क्रिसमस 12 दिनों तक मनाया जाता हैं इस प्रकार यह 6 जनवरी तक चलता हैं |
सभी धर्म प्रेम का पाठ सिखाते हैं इस त्यौहार का भी यही मकसद हैं यह भी मनुष्य में प्यार और विश्वास को बनाये रखने का संदेश देता हैं |
क्रिसमस के 12 दिन के फेस्टिवल को क्रिसमसटाइड के नाम से जाना जाता हैं | इन दिनों सभी एक दुसरे को गिफ्ट्स, फ्लावर्स, कार्ड्स आदि देते हैं | साथ ही इन दिनों क्रिसमस के सॉंग गाये जाते हैं और कई देशो में इस दिन सांता की प्रथा का अनुसरण किया जाता हैं |
छोटे बच्चे सांता क्लॉज़ से नये-नये गिफ्ट की विश करते हैं और इस दिन सांता उनकी इच्छा पूरी करते हैं |
  • Christmas Day Story History

क्रिसमस कहानी इतिहास

क्रिसमस का दिन जीजस क्रिस्ट का जन्म दिवस माना जाता हैं | इसके बारे में तथ्य बाइबिल में लिखे गए हैं | इनके बारे में कई कहानियाँ कही जाती हैं | तथ्य के अनुसार कहा जाता हैं इनके जन्म के समय गॉड ने मनुष्य को यह संकेत दिए थे कि उनकी रक्षा और उन्हें ज्ञान देने के लिए ईश्वर का एक अंश मसीहा के रूप में आप सभी के बीच जन्म लेने वाला हैं |
जीजस को ही मसीहा कहा जाता हैं इनकी माँ का नाम मेरी और पिता का नाम जोसेफ था | जब इनका जन्म होने वाला था तब इनके माता पिता की शादी नहीं हुई थी इनके पिता एक कारपेंटर थे | इनके जन्म के समय गॉड ने इनके माता पिता को इनके दिव्य होने का संदेशा एक परी के जरिये भिजवाया था | और बहुत से ज्ञानी महात्मा लोगो को भी इस बात का पता था कि ईश्वर का अंश जन्म लेने वाला हैं | इनके जन्म के समय इनके माता पिता एक जंगली इलाके में फंस गये थे वही कई जानवरों के बीच जीजस का जन्म हुआ था जिसे देखने कई महान बुद्धिमान लोग आये थे | कहा जाता हैं वह दिन क्रिसमस था |
  • Christmas Tree Celebration History

क्रिसमस ट्री इतिहास :

क्रिसमस डे सेलिब्रेशन में सबसे ज्यादा महत्व क्रिसमस ट्री का होता हैं इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा कही जाती हैं कि कैसे इस दिन ट्री को सजाया जाने लगा |
क्रिसमस के दिन सदाबहार वृक्ष को सजाकर सेलिब्रेशन किया जाता हैं यह परम्परा जर्मनी से शुरू हुई जिसमे एक बीमार बच्चे को खुश करने के लिए उसके पिता ने सदाबहार वृक्ष को सुंदर तैयार करके उसे गिफ्ट दिया |
इसके अलावा यह भी कहा जाता हैं जब जीजस का जन्म हुआ तब ख़ुशी व्यक्त करने के लिए सभी देवताओं ने सदाबहार वृक्ष को सजाया तब ही से इस वृक्ष को क्रिसमस ट्री का प्रतीक समझा जाने लगा और यह परंपरा प्रचलित हो गई |
  • Christmas Day Celebration

कैसे मानते हैं क्रिसमस डे :

  • यह फेस्टिवल क्रिसमस के कई दिनों पहले शुरू हो जाता हैं जिसमे क्रिश्चियन जाति के लोग अथवा जो इसे मानते हैं | वे सभी इन दिनों बाइबिल पढ़ते हैं, मैडिटेशन करते हैं और अपने धर्म के अनुसार फ़ास्ट अथवा उपवास भी करते हैं |
  • क्रिसमस में यीशु के जन्म का सेलिब्रेशन के साथ- साथ दुनियाँ में शांति का संदेश भी देता हैं | यीशु शांति और सदाचार का प्रतीक माने जाते हैं इन दिनों उनके जीवन संबंधी कहानियाँ पढ़ी एवम सुनाई जाती हैं जिससे मनुष्य में शांति, दया, सदाचार एवम प्यार का भाव उत्पन्न हो सके |
  • इन दिनों में सभी अपने घर एवम आसपास के सभी स्थानों को साफ़ करते हैं उन्हें सजाते हैं | कई अच्छे-अच्छे व्यन्जन बनाते हैं |अपनों के लिए गिफ्ट्स लाते हैं कार्ड्स बनाते हैं | और एक दुसरे से मिलकर उन्हें कार्ड्स, गिफ्ट्स एवम कई पकवान देते हैं |
  • इन दिनों चर्च में प्रेयर की जाती हैं, मैडिटेशन करते हैं, सॉंग गाये जाते हैं कैंडल जलाकर सेलिब्रेशन किया जाता हैं |
  • यीशु के जन्म का सेलिब्रेशन किया जाता हैं खासतौर पर चर्च में जश्न मनाया जाता हैं |

Christmas Day Hindi Shayari

क्रिसमस शायरी

  • खत्म हुआ इंतजार
    फिर आएगी सदाबहार
    क्रिसमस का लाये हैं हम संदेश
    सभी मनाये क्रिसमस देश विदेश
   Merry Christmas
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  • सुंदर सजाया क्रिसमस ट्री
    घर में बनाया केक और पेस्ट्री
    कब बजेगी घड़ी में बारा
    हम जायेंगे मोहल्ला सारा
  Merry Christmas
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टीम टीम करते तारे
आसमान में छा गये सारे
कहते हैं वो जोर-जोर से
क्रिसमस मनाओ जोर शोर से
  Merry Christmas
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  • सुंदर सजायेंगे ट्री इस बार
    चलो जल्दी करो मेरे यार
    आयेगा सांता क्लॉज़ इस बार
    मांगो तौहफा और ढेर सारा प्यार
  क्रिसमस की शुभकामनाएं
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  • आया हैं आया क्रिसमस का त्यौहार
    चलो मनाये जमकर इस बार
    देते हैं आपको ढेर सारी बधाई
    खत्म करो आज सारी लड़ाई

    किसमस की बधाई  
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Christmas day Nibandh History Tree Shayari Speech आपको यह आर्टिकल के जरिये हमारी तरफ से ढेर सारी बधाई | त्यौहार प्रेम और दया का भाव सिखाता हैं इसे जितना मनाते हैं उतना ही अपनों के करीब आते हैं | त्यौहार किसी भी धर्म का हो प्रेम का पाठ ही सिखाता हैं | इसलिए हमें सभी त्यौहार दिल से मनाना चाहिये |

होली त्यौहार कथा निबंध लठ्ठ मार होली इतिहास

by Amar Ujala Now  |  in त्यौहार at  02:01
Holi Tyohar Nibandh Essay History Date Mahatva Hindi Songs Katha होली त्यौहार कथा निबंध लठ्ठ मार होली इतिहासजरुर पढ़े कैसे हमारे देश में तरह तरह के त्यौहार मनाये जाते हैं जिसका मजा देखने पर्यटक भी खींचे चले आते हैं |


Holi Tyohar Nibandh Essay In Hindi

होली पर निबंध

होली रंगों का त्यौहार हैं जो जीवन में रंगों का महत्व बताता हैं | होली का त्यौहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न हैं | जश्न कई तरह से मनाया जाता हैं | इसी तरह होली में रंगों एवम फूलो से जश्न मनाने की रीत हैं | होली भारत देश में मनाये जाने वाले बड़े त्यौहारों में से हैं दिवाली के बाद होली ही पुरे देश में उत्साह से मनाई जाती हैं |
यह दो दिवसीय त्यौहार कही जाती हैं | पहला दिन होलिका दहन किया जाता हैं और दुसरे दिन होली खेली जाती हैं जिसे धुलेंडी कहा जाता हैं |इस रंगो की त्यौहार में कई प्रथायें छिपी होती हैं कई तरह से इस त्यौहार को मनाया जाता हैं लेकिन मकसद सिर्फ एक होता हैं दिल में भरे आपसी द्वेष को भूलकर अपने रिश्तो और दोस्तों को गले लगाना और उत्साह के साथ होली के इस त्यौहार को मनाना | कहा जाता हैं इस दिन आपसी बैर को छोड़कर सभी अपनों को गले लगाते हैं और रंगो के साथ धूमधाम से त्यौहार मनाते हैं |
  • Holi kab hai 2016

होली कब हैं ?

हिंदी पंचाग के अनुसार फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन होता हैं और चैत्र की प्रथमा के दिन रंग खेला जाता हैं |होली दो दिन का त्यौहार हैं पहले दिन होली जलाई जाती हैं जिसे होलिका दहन अथवा छोटी होली कहते हैं और दूसरा दिन होली मनाने का होता हैं जिसे पानी, रंगों एवं फूलो से मनाया जाता हैं |
वर्ष 2016 में होली (holi 2016) 23 मार्च एवम 24 मार्च को मनाई जायेगी |
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होली की कथा महत्व

हर एक त्यौहार के पीछे एक शिक्षाप्रद कथा अथवा इतिहास होता हैं जो हमें सही गलत की सीख देता हैं | होली के त्यौहार के पीछे भी एक पौराणिक कथा हैं |
हिरण्याकश्यप एक राक्षस राज था जिसने सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिपत्य कर लिया था | इस बात का उसे बहुत घमंड था और वो अपने आपको भगवान विष्णु से श्रेष्ठ समझता हैं |वो स्वयं को भगवान विष्णु का शत्रु मानता था इसलिए उसने यह ठान रखी थी कि वो किसी को विष्णु पूजा नहीं करने देगा और जो करेगा वो उसे मार देगा | उसने सभी विष्णु भक्तो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया | उसी हिरण्याकश्यप का पुत्र था प्रहलाद | प्रहलाद में पिता के कोई अवगुण ना थे | वो एक प्रचंड विष्णु भक्त था और निरंतर उनका नाम जपता था | यह बात हिरण्याकश्यप को एक आँख ना भाती थी | इसलिए उसने प्रहलाद को समझाने के कई प्रयास किये | सब विफल होने पर उसने अपने ही पुत्र को मारने का निर्णय लिया जिसके लिए उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया | होलिका को आशीर्वाद मिला था कि उसे कोई भी अग्नि जला नहीं सकती लेकिन अगर वो इस वरदान का गलत उपयोग करेगी तो स्वयं भस्म हो जाएगी | भाई की आज्ञा के कारण बहन होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर लकड़ी की शैय्या पर बैठ जाती हैं |और सैनिकों को लकड़ी में आग लगाने का हुक्म देती हैं | प्रहलाद अपनी बुआ की गोदी में बैठकर अपने अराध्य देव विष्णु का नाम जपने लगता हैं और विष्णु भगवान भी प्रहलाद की सच्ची और निष्काम भक्ति के कारण उसकी रक्षा करते हैं | इस प्रकार होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो जाती हैं |  तभी से यह त्यौहार मनाया जाता हैं | कहा जाता हैं सच्चे भक्त को गलत इरादों के कारण मारने के प्रयास में बुराई का सर्वनाश होता हैं | इस प्रकार इस दिन को बुराई को खत्म कर जलाकर अच्छाई की तरफ रुख करने का त्यौहार माना जाता हैं |
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होली कैसे मनाई जाती हैं ?

यह त्यौहार उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता हैं | पुरे देश में मथुरा, वृन्दावन, ब्रज, गोकुल, नंदगाँव की होली सबसे ज्यादा प्रसिद्द हैं | इनके अलावा बरसाना की होली सबसे ज्यादा अनोखी हैं | इसे लट्ठमार होली कहा जाता हैं इसके शहर की लडकियाँ लड़को को लट्ठ मारती हैं |
  • लठ्ठ मार होली :

लट्ठ मार होली फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती हैं | इस होली का रिवाज उत्तर भारत में हैं | यह रिवाज बरसाना एवं नंदगाँव में हैं | इसे देखने देश और विदेश के लोग हर साल इक्कठा होते हैं | कहा जाता हैं यह होली ग्वाले और गोपियों के बीच खेली जाती हैं | ग्वालों का गाँव नंदगाँव हैं | जहाँ से वे गोपियों को रिझाने उसके गाँव बरसाना आते हैं और गोपियाँ उन्हें लठ्ठ मारती हैं जिससे बचने के लिए ग्वाले ढाल का उपयोग करते हैं | ऐसा खेल कृष्ण अपने सखाओ के साथ गोपियों के संग खेलते थे जो बढ़ते- बढ़ते आज लठ्ठ मार होली के रूप में मनाया जाने लगा जिसे देखने लोगो का तांता लगा रहता हैं | यह लठ्ठ मार होली भारत के साथ- साथ विदेशो में भी प्रसिद्द हैं इसलिए  विदेशी पर्यटक विशेष रूप से इसे देखने भारत आते हैं |
  • होली का एक और रूप हैं कई जगहों पर फूलो की होली खेली जाती हैं जो आज के समय में पानी बचाओ का संदेश देती हैं |
  • गैर वाली प्रसिद्द होली :

यह खेल रंगपंचमी के दिन खेला जाता हैं जो कि होली के पांच दिन बाद आती हैं | गैर की होली मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में खेली जाती हैं | इसमें पुरे शरह के सभी इलाकों से पुरुष एकत्र होकर शहर के मध्य स्थान राजवाड़ा पर एकत्र होते हैं | सभी अपने अपने मौहल्ले से नाचते गाते ढोल ढमाकों के साथ होली खेलते हुए राजवाड़ा पर आते हैं और इस दिन होली का रंग हाथों से नहीं बल्कि टेंकर में भरकर लोगो पर बरसाया जाता हैं | साथ ही घरो में भी टैंकर से रंग वाला पानी बरसाया जाता हैं | पूरा शहर इक्कट्ठा होकर एक साथ होली खेलता हैं |  इस दिन के लिए कई दिनों पहले राजबाड़ा के आसपास के घरो एवं दुकानों को बड़े-बड़े प्लास्टिक के जरिये ढाका जाता हैं ताकि रंग के पानी से सुरक्षा की जा सके | इस तरह यह इंदौर की रंगपंचमी पुरे देश में प्रसिद्द हैं |
  • होली पार्टी :

आज के समय में सभी त्यौहार पार्टी के रूप में मनाये जाते हैं जिसमे सभी नाते रिश्तेदार एवम दोस्त एक जगह एकत्र होकर त्यौहार का मजा लेते हैं | होली में विशेष रूप से भांग वाली ठंडाई पी जाती हैं | होली के गीतों के साथ सभी एक दुसरे को पकवान खिलाते और गुलाल लगाकर होली की बधाई देते हैं |
  • फाग महोत्सव :

होली के त्यौहार में कई लोग फाग महोत्सव का आयोजन करते हैं जिसमे सभी एक दुसरे से मिलते हैं एवम holi के गीत गाते हैं | खासतौर पर छोटे शहरों में फाग के गीत गाये जाते हैं जिसमे एक मंडली होती हैं जो सभी के घर जाकर फाग के गीत गाती हैं जिसमे नाचते हैं और ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आन्नद लिया जाता हैं | सभी अपने- अपने रीती रिवाज के अनुसार फाग महोत्सव मनाते हैं |

होली के फ़िल्मी गाने

Holi Hindi Filmy Songs :

क्रगीतफिल्म नाम
1रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसेसिलसिला
2होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैंशोले
3अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगानाडर
4गिव मी अ फेवर लेट्स प्ले होली
5होलीरा में उड़े रे गुलाल कैयों रे मगेतर से
6अरे जा रे हट नटखटनवरंग
7होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीराबाघबान
8देखो आई होलीमंगल पांडे
9ओ देखो होली आईमशाल
10फागुन आयो रेफागुन
11बलम पिच्कारी जो तूने मुझे मारी
इस प्रकार पुरे देश में तरह-तरह से होली का त्यौहार मनाया जाता हैं | होली में गीतों का बहुत ज्यादा महत्व होता हैं कई दिनों पहले से होली के गाने इक्कठे कर पार्टी की तैयारी की जाती हैं | आपके लिए कुछ Holi के बॉलीवुड सॉंग की लिस्ट लिखी गई हैं जिसके जरिये आप अपने पसंदीदा गाने को होली पर बजाकर आनंद ले सकते हैं |
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