सूरदास भक्ति काल सगुण धारा के कवी कहे जाते हैं | ये श्री कृष्ण के परम भक्त हैं इसलिए इनकी रचना में कृष्ण भक्ति के भाव उजागर होते हैं | सूरदास जन्म से ही नेत्रहीन थे लेकिन उनकी रचनाओं में कृष्ण लीलाओं का जो वर्णन हैं मिलता हैं उससे उनके जन्मांध होने पर संदेह होता हैं | श्री कृष्ण की लीलाओं का जो मार्मिक वर्णन किया हैं वो किसी नेत्र वाले व्यक्ति के लिए भी आसान नहीं होगा | रचनाओं में इतना मार्मिक विस्तार होता था कि जैसे इन्होने से स्वयं कान्हा के बालपन का अनुभव लिया हो |भक्ति काल सगुण धारा के कवी सूरदास कवियों में राजा कहलाते थे |
Surdas Dohe Jeevan Parichay Hindi
सूरदास जीवन परिचय
सूरदास पंद्रहवी सदी के संत,कवी कहे जाते हैं इनकी रचनायें कृष्ण भक्ति से ओत प्रोत हैं इनके नाम के समान ही यह सूर के दास हैं जिनके जीवन में संगीत का सूर एवम कृष्ण की भक्ति ही सब कुछ हैं |
जन्म | 1478 रुनकता |
मृत्यु | 1580 |
पिता का नाम | रामदास (गायक) |
गुरु का नाम | वल्लभाचार्य |
रचनायें
| सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती,ब्याहलों |
सूरदास अकबर के समय से प्रसिद्ध हैं यह स्वयम के भजन गाते थे जिसके जरिये वे भक्तों को कृष्ण के जीवन का ज्ञान देते हैं | इनकी पकड़ ब्रज भाषा में कही जाती हैं | कहते हैं बादशाह अकबर एवम महा राणा प्रताप दोनों ही सूरदास से बहुत अधिक प्रभावित थे |
- सूरदास एक कृष्ण भक्त के रूप में :
इनके विषय में कई कथा प्रचलित हैं कहते हैं एक बार ये एक कुंये में गिर जाते हैं और वहाँ भी कृष्ण भक्ति में लीन हो जाते हैं तब स्वयं कृष्ण भगवान ने उनकी जान बचाई थी तब देवी रुक्मणि नेश्री कृष्ण से पूछा था कि वे क्यूँ स्वयं सूरदास जी की जान बचा रहे हैं तब कृष्ण ने कहा था मैं एक सच्चे भक्त की मदद कर रहा हूँ यह उसकी उपासना का फल हैं |जब कृष्ण उन्हें बचाने गये तब उन्होंने सुरदार को उनकी नेत्र ज्योति दी तब सूरदास ने अपने इष्ट को देखा | तब कृष्ण ने सूरदास से कहा कि वे कोई भी वरदान मांगे | तब सूरदास ने उत्तर दिया उसे सब कुछ मिल चूका है और वो चाहता हैं कि उसे वापस अँधा कर दे क्यूंकि वो अपने इस इष्ट को देखने के बाद किसी अन्य को देखना नहीं चाहते | कृष्ण ने सुरदास की इच्छा पूरी की और उन्हें जन्म जन्मांतर तक ख्याति प्राप्त हो ऐसा आशीर्वाद दिया |
- सूरदास एक कवी के रूप में :
सूरदास हिंदी भाषा के सूर्य कहे जाते हैं इनकी रचनाओं में कृष्ण की भक्ति का वर्णन मिलता हैं | इनकी सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती,ब्याहलों रचनाये प्रसिद्ध हैं |
- सूरदास जी ने अपने पदों के द्वारा यह संदेश दिया हैं कि भक्ति सभी बातों से श्रेष्ठ हैं |
- उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवम शांत रस के भाव मिलते हैं |
- सूरदास जी कूट नीति के क्षेत्र में भी काव्य रचना करते हैं |
- उनके पदों में कृष्ण के बाल काल का ऐसा वर्णन हैं मानों उन्होंने यह सब स्वयं देखा हो | यह अपनी रचनाओं में सजीवता को बिखेरते हैं |
- इनकी रचनाओं में प्रकृति का भी वर्णन हैं जो मन को भाव विभोर कर देता हैं |
- सूरदास जी भावनाओं के घनी हैं इसलिए उनकी रचनायें भावनात्कम दृष्टि कोण से अत्यंत लुभावनी हैं |
- सूरदास जी के पद ब्रज भाषा में लिखे गये हैं | सूरसागर नामक इनकी रचना सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं |
- सूरदास जी के विषय में मतभेद :
इनके जन्म एवम मृत्यु के विषय में कई मतभेद हैं उसके बारे में जानकारी अलग-अलग प्राप्त होती हैं | कई ग्रन्थ में लिखे इतिहास के आधार पर सूरदास जी के जन्म से अंधे होने पर संदेह हैं | श्याम सुंदर दास जी कहते हैं कि जिस तरह से वे वात्सल्य रस एवं श्रंगार रस का चित्रण करते हैं यह किसी भी नेत्रहीन व्यक्ति जिसने कभी देखा ही ना हो के लिये नामुमकिन हैं | डॉ हजारी प्रसाद ने भी कहा कि माना उनके कई पदों में उनके जन्म से अंधत्व होने का उल्लेख्य हैं लेकिन केवल उन रचनाओं के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि नहीं की जा सकती |
भले ही यह जन्म से नेत्रहीन ना हो लेकिन इनकी रचनाओं से यह स्पष्ट हैं कि यह एक प्रचंड भक्त एवम सुरों के दास सूरदास हैं |
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- सूरदास पद एवम दोहे अर्थ सहित
Surdas dohe arth sahit
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।
पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।
मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥
सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।
सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥
अर्थात :
सूरदास जी कहते हैं कि जब कृष्ण जी छोटे थे तब अपने बड़े भाई बलराम के कारण बहुत दुखी होकर अपनी मैया यशोदा से कहते हैं कि हे मैया बलराम भैया मुझे बहुत चिढ़ाते हैं मुझे कहते हैं कि मैया ने तुझे मोल भाव देकर ख़रीदा हैं |उनके इसी व्यवहार के कारण में खेलने नहीं जाता वो बार –बार मुझसे पूछते हैं कि मेरे माता पिता कौन नहीं |और यह भी कहते हैं कि नन्द बाबा और माता यशोदा दोनों का ही रंग गौरा हैं और मेरा काला | बार बार सखाओं के सामने मुझे चिढ़ाते हैं और खूब नचाते हैं मेरी इस दशा पर सभी हँसते हैं |और माँ तू भी मुझे ही डाटती और मरती हैं बड़े भैया को कुछ नहीं कहती | माँ तू गौ माता की सोगंध खा मैं ही तेरा सुपुत्र हूँ |सुरदास जी कहते हैं कि कृष्ण लला की यह मोहित करने वाली बाते सुनकर माता यशोदा भी मुस्कुरा रही हैं |
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बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥
काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥
अर्थात :
सूरदास जी कहते हैं कि कृष्ण जी एक नन्ही सी सखी से पूछते हैं कि तुम कौन हो,उसकी मैया से कहते हैं काकी तेरी ये बेटी कहाँ रहती हैं कभी ब्रज में देखी नहीं क्यूँ तेरी बेटी ब्रज में आकर हमारे साथ खेलती हैं ? वो नन्द का लाला जो चौरी करता फिरता हैं उसे चुपचाप सुन रही हैं कृष्ण कहते हैं चलो ठीक हैं हमें खेलने के लिए एक और साथी मिल गई हैं | श्रृंगार रस के प्रचंड पंडित राधा और कृष्ण की बातचीत को अनूठे ढंग से प्रेषित कर रहे हैं |
सुरदास के जीवन परिचय के साथ दोहे और उनके अर्थ आपके लिए लिखा गया हैं कैसा लगा आपको यह कमेंट जरुर करें |
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