हिंदी भारत की मूल भाषा हैं परन्तु जिस तरह देश में भिन्न भिन्न धर्म के लोग हैं उसी तरह कई भाषाये एवम बोलियाँ भी यहाँ बोली जाती हैं इन सबके आलावा देश में हिंदी एवम आंग्ल भाषा अर्थात इंग्लिश के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही चली जा रही हैं | इंग्लिश बोलने वाले लोग हिंदी भाषी की तुलना में आकर्षण का केंद्र होते हैं जैसे अगर किसी ऑफिस में कोई हिंदी में बात कर रहा हो और उसी समय कोई इंग्लिश में बात करे तो सभी का ध्यान इंग्लिश भाषी की तरफ होता हैं और उनकी सुनवाई भी हिंदी भाषी की तुलना में जल्दी होती हैं |
कड़वा हैं पर सच हैं देश में देश की मूल भाषा से ज्यादा तवज्जु पश्चिमी भाषा को दी जा रही हैं उसका मुख्य कारण हैं रोज़ गार प्राप्ति में आने वाली रूकावट | इंग्लिश को सभी अच्छी रोज़गार कंपनियों तथा अन्य सस्थाओं में विशेष प्राथमिकता दी जाती हैं | कोई छात्र अपनी फिल्ड का दिग्गज ही क्यूँ ना हो लेकिन उसकी इंग्लिश अच्छी नहीं हैं तो उसे रोज़गार में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं जो कि उसके आत्म विश्वास को गहरा आघात पहुंचता हैं |
इंग्लिश को आज के वक्त में अत्यंत आवश्यक भाषा माना जा रहा हैं क्यूंकि यह एक अन्तराष्ट्रीय भाषा हैं पर इसे ना बोलने वालो को क्यूँ हीन दृष्टि से देखा जाता हैं ? अगर गौर से सोचा जाए तो यह महज़ एक भाषा हैं जिसका मतलब में अपनी बात सामने वाले को उचित तरीके से समझाना, जो कि टूटी फूटी इंग्लिश या अन्य भाषा के ज़रिये भी किया जा सकता हैं लेकिन इंग्लिश ने एक फ़ेशन की तरह हमारे देश को प्रभावित कर रखा हैं |
आइये जाने एक एतिहासिक कारण कि क्यूँ हमारा देश इंग्लिश बोलने वालों से ज्यादा प्रभावित हैं :
जब देश पर फिरंगियों का आतंक था हमारे देश का हर कोना अंग्रेजों का गुलाम था उस वक्त देश को सही तरह से नियंत्रित एवम चलाने के लिए अंग्रेजों को स्थानीय लोगो की आवश्यक्ता थी और जिसके लिए अपने कार्यालयों की नीची पोस्ट पर भारतीय लोगो को रखा जाता था जिसके लिए उन लोगो को इंग्लिश सीखना जरुरी था ताकि वे अंग्रेजी सरकार एवम भारतीय नागरिको के बीच ताल मेल बैठा सके | उस वक्त इन सरकारी मुलाज़िमों को देश की जनता द्वारा उनकी इंग्लिश जानने की क्षमता से पहचाना जाता था और यह मुलाज़िम देश की अनपढ़ एवम गरीब जनता के बीच बहुत शान से जीता था जिस कारण उन्हें अलग ओदा मिलता था इसके अलावा जो भारतीय इंग्लिश जानते थे वो पढ़े लिखे अथवा बड़े घरानों के होते थे | इन्ही सब कारणों से देश की जनता के बीच इंग्लिश भाषा का रौब अलग था जो यहाँ कि परम्परा बन गया आज आजादी के बाद भी इंग्लिश भाषी की तरफ लोगो का आकर्षण ज्यादा हैं |
यह जानने की जरुरत हैं कि इंग्लिश एक भाषा हैं जिससे डरने की जरुरत नहीं, उसे सीखने की जरुरत हैं, जिस तरह हम देश की अन्य भाषा जैसे मराठी, गुजराती, कन्नड़ या मलयालम आदि को सीखने की कोशिश करते हैं, जब भी हम इन भाषाओँ को बोलने की कोशिश करते हैं हम गलत बोलते हैं सही बोलने की कोशिश करते हैं और हँसते हँसते सीख जाते हैं लेकिन इन भाषाओँ को ना बोल पाने पर हम हताश नहीं होते लेकिन अगर हम इंग्लिश नहीं बोल पाते, तो हम खुद को कमज़ोर पाते हैं, उससे डर कर भागते हैं, शर्म महसूस करते हैं पर इसमें शरमाना क्या? अगर हमारी परवरिश उस जगह हुई जहाँ इंग्लिश नहीं बोली जाती थी तो इसमें क्या गलत हैं यह एक आम भाषा हैं जिसे हम बिना झिझक अपनाएंगे तो यह भाषा हमें अपना लेगी | डर कर और शरमाकर सीखने की कोशिश करेंगे तो कभी नहीं सीख पायेंगे | जिसके लिए जरुरी हैं अपने अन्दर के आत्म विश्वास को मजबूत करना और अपनी ताकत को पहचानना |
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