इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय निबंध पूण्यतिथि एवम उनकी जयंती पर यह लेख लिखा गया हैं | इसके जरिये जाने उनका जीवन कैसा था ?
Indira Gandhi Jayanti Jeevan Parichay Essay In Hindi
इंदिरा गाँधी जीवन परिचय जयन्ती एवम पूण्यतिथि निबंध
Indira Gandhi Jayanti Jeevan Parichay Essay In Hindi
इंदिरा गाँधी जीवन परिचय जयन्ती एवम पूण्यतिथि निबंध
1 | नाम | इंदिरा गाँधी |
2 | जन्म- मृत्यु | 19 नवम्बर 1917- 31 अक्टूबर 1984 |
3 | पति का नाम | फिरोज गाँधी |
5 | संतान का नाम | संजीव गाँधी और राजीव गाँधी |
इंदिरा गाँधी,भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थी | इनका जन्म 19 नवम्बर 1917 में जवाहरलाल नेहरु के परिवार में हुआ | इनकी माता कमला नेहरु थी |
इंदिरा गाँधी के पति का नाम
इनका विवाह 16मार्च 1942 को फ़िरोज़ गाँधी से हुआ | इनकी दो सन्ताने थी जिनके नाम संजीव गाँधी और राजीव गाँधी थे | यह एक कुशल राजनीतिज्ञ परिवार की बेटी थी इसलिए राजनीती में इनका रुझान निःसंदेह था | अपने कर्मो से इन्होने नेहरु परिवार का नाम रोशन किया | इन्होने बच्चो की “वानर-सेना” बनाई, जिसने भारत की स्वतन्त्रता में बहुत छोटा पर अतिमहत्वपूर्ण सहयोग दिया |
1934-35 में इन्होने प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात शान्ति-निकेतन में रविन्द्रनाथ टैगौर के विश्व-भारतीय विश्वविद्यालय में ज्ञान अर्जन किया, टैगौर जी ने इन्हें ‘प्रियदर्शिनी’ नाम से सम्मानित किया| ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए प्रथम प्रयास में वह अनुतीर्ण रही | अत: ब्रिस्टल स्कूल में कुछ समय अध्ययन के बाद 1937 सोमरविल कॉलेज, आक्सफोर्ड में इन्हें प्रवेश मिला| 1941 में इन्दिरा स्वदेश वापस लौट आई और भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़ गई |
स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी
इस वक्त देश में ‘असहयोग-आन्दोलन’ की अग्नी प्रज्वलित थी | सितम्बर 1942 में इन्हें बिना किसी आरोप के जेल डाल दिया गया | इसके बाद 13 मई 1943 को उन्हें रिहा कर दिया गया | 1947 में भारत-पकिस्तान के विभाजन के दौरान देशवासियों एवम पड़ोसी देश से आये लोगो की सेवा की यह पहला मौका था | जब इंदिरा सार्वजनिक सेवा से जुड़ी| भारत में प्रथम आम चुनाव 1951 के आस-पास हुए इस वक्त नेहरु एवम फ़िरोज़ रायबरेली के क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे जिनका प्रचार-प्रसार इंदिरा जी ने बहुत लगन से किया |
फ़िरोज़ के साथ उनका वैवाहिक जीवन बहुत कष्टपूर्ण था जिसके चलते मत भेद बड़ता ही चला गया | अंततः 8 सितम्बर 1960 को जब इन्दिरा अपने पिता के साथ विदेश दौरे पर गई थी, फ़िरोज़ का देहवसान हो गया और इनका रिश्ता सदा के लिए खत्म होगया |
इंदिरा गाँधी कब कांग्रेस की अध्यक्ष बनी ?
1959-60 के दौरान इन्दिरा भारतीय-राष्ट्रीय-काँग्रेस की अध्यक्ष बनाई गई | 27 मई 1964 में इनके सिर से पिता का साया उठ गया इसके बाद लालबहाद्दुर शास्त्री ने देश की कमान सम्भाली | शास्त्री जी के नेतृत्व में इंदिरा को सूचना एवम प्रसारण मंत्री बनाया गया | इस तरह उनका सरकार में प्रवेश हुआ |
हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने में इंदिरा गाँधी का योगदान
‘हिन्दी’ को राष्ट्र-भाषा बनाने के मुद्दे पर देश में मतभेद उत्पन्न हो गया दक्षिण राज्यों के नेताओ एवम नागरिको में बहुत असंतोष उत्पन्न हो गया ऐसी स्थिती में इंदिरा ने शांति और सामंजस्य से काम लेते हुए परिस्थिती को नियंत्रित किया | उनके इस काम से शास्त्री एवम अन्य मंत्रीगण बहुत प्रभावित हुए |
कब बनी इंदिरा गाँधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री
1966 में शास्त्री जी के आकस्मिक निधन के बाद पार्टी के अध्यक्ष ‘के.कामराज’ के सहयोग से इन्दिरा को देश की कमान सौंपी|1966 में इन्दिरा के प्रधानमन्त्री बनने के बाद वैचारिक मत-भेद के कारण पार्टी दो समूह में विभाजित हो गई | ‘समाजवादी’ का नेतृत्व इंदिरा ने सम्भाला एवम ‘रुढ़िवादी’ का नेतृत्व मोरारजी देसाई ने सम्भाला | देसाई इन्हें व्यंगात्मक रूप से ‘गूंगी गुड़िया’ बोला करते थे | शायद अपशब्दों से भरी गंदी राजनीती की शुरुवात हो चुकी थी | 1967 के चुनाव में 545 सीटों में से काँग्रेस को 297 पर जीत मिली इन्हें बेमन से देसाई जी को उप-प्रधानमंत्री एवम वित्त-मंत्री बनाना पड़ा | देसाई के साथ मतभेद इतने तीव्र होगये कि 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया | समाजवादी एवम साम्यवादी दलो के साझे से इन्दिरा ने दो वर्षो तक शासन चलाया|
प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गाँधी की उपलब्धियाँ
जुलाई 1969 में उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करवाया | 1971 में बांग्लादेश के शरणार्थी के लिए उन्होंने पूर्वी-पाकिस्तान के खिलाफ़ युद्ध का मौर्चा बुलंद किया | जिसमे भारत को राजनैतिक एवम सैन्य बल के सहयोग से जीत हासिल हुई |
इन्दिरा ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति “ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो” को “शिमला शिखर वार्ता” में आमंत्रित किया|यह वार्ता पुरे सप्ताह चली | उचित परिणाम ना निकलने के कारण एक बीच का रास्ता निकला गया एवम शिमला-समझौते पर हस्ताक्षर किये गये इसके अनुसार दोनों देशों को कश्मीर-विवाद पर शांतिपूर्ण तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य किया गया | भुट्टो ने इस सम्वेदनशील मुद्दे को बहुत संयम से नियंत्रित किया एवम व्यापार सम्बन्धो को भी सामान्य किया गया |
सुरक्षा के मद्दे नजर एवम भारतीय ताकत को बड़ाने के लिए 1974 में राजस्थान के पोखरण में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के नाम से भूमिगत सफल परमाणु परिक्षण किया गया ,इस तरह इन्दिरा ने भारत को परमाणु शक्तिशाली बनाया |
इन्दिरा ने ना केवल परमाणु-शक्ति को अपितु खाद्य विभाग को बढ़ाने का भी बहुत प्रयास किया | 1960 में आये उत्पादन में बढोत्तरी को ‘हरित-क्रांति’ का नाम मिला | इस हरित क्रांति के लिए,नई किस्म के बीज, रासायनिक जैसे ऊर्वरक, कीटनाशक एवम खरपतवार निवारको एवम वैज्ञानिक सलाह का समावेश हुआ जिससे कई फसलो के उत्पादन में वृद्धि हुई |
1971 के चुनाव में पार्टी ने ‘गरीबी-हटाओ’ का नारा बुलंद किया | आपसी मनमुटाव के कारण काँग्रेस सरकार कई हिस्सों में विभाजित हो गई थी इसलिए चुनाव का पूर्वानुमान लगाना बेहद मुश्किल था |गरीबी हटाओ के नारे के पीछे बहुत सी राशि का आवंटन किया गया परन्तु 4% राशि ही इस काम में ली गई वो भी सच के गरीबो तक नहीं पहुँच पाई| इसलिए ‘गरीबी हटाओ’ का नारा तो सफल नहीं हुआ पर इन्दिरा की पुन: सरकार में वापसी हो गई |
राजनीती में इंदिरा गाँधी की बिगड़ती तस्वीर
इन्दिरा पर सत्तावादी होने का आरोप लगा इन्होने संविधान के कानून में संशोधन कर केन्द्र एवम राज्य के संतुलन को बदल दिया | इन्होने दो बार विपक्षी नेता द्वारा संचालित राज्यों को सम्विधान की धारा 356 के तहत ‘अराजक’ घोषित कर उन पर राष्ट्रपति शासन लागु करवा दिया| उस वक्त इनके पुत्र संजय गाँधी इनके राजनेतिक सलाहकार बने, जिनके सत्तावादी व्यवहार के कारण पूर्व सलाहकार पि.एन.हक्सर इनसे काफी नाराज़ दिखाई दिए| उनके इस तरह के व्यवहार के कारण जयप्रकाश नारायण, सतेन्द्र नारायण सिन्हा और आचार्य जीवंतराम कृपलानी जैसे नामी नेता ने भी सरकार का विरोध किया एवम इस हेतु इन लोगों ने भारत का भ्रमण किया|
राज नारायण जो कि रायबरेली से चुनाव लड़ते थे और हार जाते थे ,वह इन्दिरा के सदैव खिलाफ़ रहे| राज नारायण ने एक चुनाव याचिका दायर की और 12 जुन 1975 में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा को चुनाव से निलम्बित कर दिया और उन्हें संसद की गद्दी छोड़ने एवम छह वर्षो तक चुनाव से दूर रहने का आदेश जारी कर दिया| इस तरह उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ने को कहा गया जिस पर इन्दिरा ने फैसले की खिलाफ़ अपील की परन्तु विपक्षी दलों ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया और इस्तीफे की मांग करने लगे और इनकी छवि बिगाड़ कर जनता को भी इनसे इस्तीफा मांगने पर मजबूर कर दिया | इस सब के कारण देश में विद्रोह उत्पन्न होगया| जिसके फलस्वरूप इन्दिरा ने विरोधियों की गिरफ्तारी का आदेश जारी किया | फिर स्थिती की गम्भीरता एवम चारो तरफ की अशांति को देखते हुए राष्ट्रपति ‘ फखरुद्दीन अली अहमद ‘ को इलाहबाद फैसले के बाद आपातकालीन स्थिती लागु करने की मांग की गई| तत्पश्चात राष्ट्रपति ने 26 जून 1975 को सम्विधान की धारा 352 के तहत आपातकालीन स्थिती की घोषणा की | इस वक्त तक इन्दिरा के शासन पर आरोपों की झड़ी लग चुकी थी | उन्होंने शासन की गरिमा को छिन्न-भिन्न कर दिया था | विपक्षी दलों के शासको का शासन मुश्किल में डाल दिया था | दूसरी तरफ संजय गाँधी ने भी पुरे देश की शान्ति को खण्डित कर दिया था| जिनके कारण सूचना एवम प्रसारण मंत्री ‘इंद्र कुमार गुजराल’ ने इस्तीफा दे दिया| संजय गाँधी के आदेश पर कई पुरुषो की जबरजस्ती नसबंदी करा दी गई| जिस कारण साम्प्रदायिक विवाद की स्थिती निर्मित हो गई और हर तरफ दंगे होने लगे और हजारो की तादात में लोग मारे गए | शासन का यह बहुत ही निंदनीय वक्त था |
इंदिरा गाँधी को चुनाव में मिली हार
इसके बाद 1977 में चुनाव हुए जिसमे काँग्रेस पार्टी को जनता-दल से भारी शिकस्त मिली इस चुनाव में मोरारजी देसाई को सत्ता मिली| काँग्रेस को पिछले चुनाव में 350 सीटो में से 153 सीटे ही हासिल की | इस नतीजे के बाद इन्दिरा के आत्मविश्वास को गहरा आघात पंहुचा| यहाँ तक की संजय और इन्दिरा के गिरफ्तारी के भी आदेश दे दिए गये |
वापस सत्ता में आने की जद्दोजहद
कही ना कही संजय गाँधी की गिरफ्तारी उनके लिए लाभकारी सिद्ध हुई और उन्होंने देश से बहुत सारी सहानुभूती कमा ली | उन्होंने अपने भाषण के जरिये सभी से माफ़ी मांगी | अंततः देसाई ने 1979 को इस्तीफा दे दिया परन्तु इन्दिरा अभी भी निलम्बित थी, इस कारण” चरण सिह” को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया |1979 में सरकार टूट गई और इस बार इन्दिरा भारी बहुमत से सत्ता में वापस आगई|
लेकिन सत्ता के यह दिन बहुत कठिन थे |पंजाब में चल रहे विवाद उन पर हावी थे | इसी दौरान इनके आदेष पर हुए पुलीस कार्यवाही में 3000 से अधिक लोग मारे गये |
इंदिरा गाँधी की मृत्यु पूण्यतिथि
इस कारण 31 अक्टूबर 1984 को इन्दिरा के दो अंगरक्षको “सतवंत सिंह” और “बेवंत सिंह” ने इन्हें गोली मार दी उसी वक्त अन्य अंगरक्षक ने बेवंत को गोली मारदी और सतवंत को गिरफ्तार कर लिया गया | इन्हें अस्पताल ले जाया गया पर इन्होने रस्ते में ही दम तौड़ दिया | इनका अंतिम-संस्कार 3 नवम्बर को ‘राज-घाट’ के समीप हुआ जिसे ‘शक्ति-स्थल’ नाम दिया गया | इनकी मृत्यु के बाद देश में संकट छा गया कई जगह विरोधप्रदर्शन हुए | इन्हें “लौह-महिला” कहा गया |
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