Wednesday, 23 December 2015

Vikram Aur Baital A Famous Series

by Amar Ujala Now  |  in सीरियल अपडेट at  02:25

Vikram और Baital दूरदर्शन पर telecast होने वाली series है जिसे आज भी याद किया जाता है | यह एक novel based series थी जिसे संस्कृत में लिखा गया था |हिंदी के रचियता बैतालभट्ट माने जाते है जिसको आधार बनाकर serial बनाया गया | यह novel भारत के अच्छे novels में गिना जाता है |




यह राजा विक्रमादित्य के न्याय संगत गुण को उजागर करने वाली कहानियों का संग्रह था जिसमे Baital or Vaital एक भुत था जो कि विक्रमादित्य को एक story सुनाता था और अंत में उस story से related एक question करता था और Baital की यह शर्त थी कि अगर राजा अपना मूंह खोलेगा तो वह उड़ कर चला जायेगा लेकिन question सुनकर अगर राजा answer जानता है और फिर भी चुप है तो उसके सिर के 100 तुकडे हो जायेंगे और नहीं जानता तब वह चुप रह सकता है | हर बार राजा उसका answer देता और हर बार Baital उड़ जाता और फिर राजा उसे ढूंढकर अपने कंधे पर बैठाकर आगे बढ़ता और Baital फिर से एक new story सुनाता |

इस series की खास बात यह थी कि जो story Baital सुनाता था उसे बहुत ही रौचक तरीके से telecast किया जाता था और end में एक suspense छोड़ दिया जाता जिसका उत्तर राजा विक्रमादित्य को देना पड़ता था इस तरह audiences को अंत तक excitement रहता था | उस वक्त के दौर में यह बहुत अलग तरह का Indian serial था जिसमे horror के साथ suspense भी होता था इसलिए audiences को इसका बसब्री से इंतजार रहता था |
Sagar Films के production में 1988 में यह series Doordarshan पर telecast की गई थी जिसमे Arun Govil ने राजा विक्रमादित्य और Sajjan Kumar ने Baitaal का character play किया था |इसी serial का remake बनाया गया और इस बार भी production Sagar Films का ही था पर इस series का नाम “Kahaniyan Vikram और Baital Ki” की रखा गया जिसे colors पर telecast किया गया |
यह बहुत ही रोचक कहानियों का संगृह है जिसे सबसे पहले संस्कृत novel में लिखा गया था जिसका नाम “वेतालपञ्चविंशति” था जो कि 25 कहानियों का अनूठा संग्रह था |जिसे कई language में रूपांतरित किया गया | इस novel के author Somadeva और Ksemendar थे जिन्होंने इसके रूपान्तर लिखे |

इसे 1719 और 1749 के बीच हिंदी में रूपांतर किया गया |यह काम John Gilchrist के direction में किया गया था उस वक्त भारत परतंत्र देश था |
इन कहानियों का संग्रह ना केवल दिल बहलाने का जरिया थी अपितु यह शिक्षाप्रद भी थी जिन्हें पढकर या देखकर व्यक्ति का दृष्टिकोण और अधिक परिपक्व हो जाता है | हमारे देश की इस कृति की सराहना जितनी की जाए कम है और television के जरिये हम सभी को इस तरह की रचनाओ को देखने का मौका मिलता है तो और भी ज्यादा ख़ुशी होती है |जब आज के दौर में बिना सिर पैर के daily soap देखने पड़ते है तो वह दौर सामने आजाता है जब television मनोरंजन के साथ knowledge को बढाने वाले serial telecast करता था | दौर पुराना था पर बहुत ही सुनहरा | आज बस यांदे ही लेकिन internet ने इन पुरानी यादों को कई तरह से संजोया है जिसे audience ने बहुत पसंद किया है |

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