Monday, 21 December 2015

Indian President ‘Neelam Sanjiva Reddy’ Facts

by Amar Ujala Now  |  in सामान्य ज्ञान at  03:02



नीलम संजीवा रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) भारत के छठें राष्ट्रपति थे उनका जन्म 19 मई, 1913 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में मध्यम वर्गीय परिवार हुआ था| कृषक परिवार में जन्मे होने के बावजूद वे एक कुशल नेता थे| नीलम संजीवा रेड्डी के पिता का नाम नीलम चिनप्पा रेड्डी था| वे कॉग्रेस के पुराने कार्यकर्ता और प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथी थे| इनका परिवार भगवन शिव में बहुत अधिक आस्था रखते था| नीलम संजीवा रेड्डी भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिनको राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार असफलता मिली थी, एवं दूसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने पर राष्ट्रपति पद के लिए इनका चुनाव हुआ था|

रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) की प्रारंभिक शिक्षा थियोसोफिकल हाई स्कूल अडयार, मद्रास में शुरू हुई थी| इसी विद्यालय में रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) अध्यात्म की ओर आकर्षित हुए थे और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्ट्स कॉलेज अनंतपुर में प्रवेश लिया| किन्तु जुलाई 1929 में गांधीजी से मिलने के बाद रेड्डी जी का जीवन पूरी तरह से बदल गया| गांधीजी ने उन्हें अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित किया| गांधीजी की बातों, कार्यों का रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) पे बहुत गहरा असर हुआ और उन्होंने मात्र 18 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी उपस्थिती दर्ज कराई| अंग्रेजो के विरुद्ध अनेको आन्दोलन में वे खड़े रहे इस दौरान उन्होंने विदेशी वस्त्रों को त्याग दिया और खादी को अपने पहनावे के रूप में अपनाया| पढाई छोड़ने का उन्हें कभी भी पछतावा नहीं हुआ|


रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) के राजनैतिक सफ़र की शुरुवात में ही वे युवा कॉग्रेस के सदस्य बन गए और कांग्रेस की सभी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई| 1936, मात्र 23 वर्ष की आयु में वे आंध्र प्रदेश प्रोविशिनल कांग्रेस कमिटी के सचिव चुने गए| अपनी योग्यता और गुणों के चलते उन्होंने इस पद पर लगातार दस वर्षो तक कार्य किया| रेड्डी जी 1946 में मद्रास विधानसभा के लिए चुने गए और मद्रास कांग्रेस विधान मंडल दल के सचिव निर्वाचित हुए| 1949 में नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) संयुक्त मद्रास राज्य में नशाबंदी, आवास, मद्य निषेध एवं वन मंत्री बन कार्य किया| 1951 में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र देकर आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए खड़े हो गए एवं जीत हासिल की|

1951 में रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) ए.पी.सी.सी. के अध्यक्ष बने| 1952 में अपने जोश राजनैतिक सूझ-बूझ के कारण वे आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बन गए| अक्टूबर 1956 आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हुआ और मुख्यमंत्री का कार्यभार रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) को सौंपा गया| 1959 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन गए| दो बार कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का कार्य सँभालने के बाद वे वापस आंध्र प्रदेश लौट आए और 1964 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने| किन्तु कुछ कारणवश उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था|

1964 में नीलम संजीवा रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) राष्ट्रीय राजनीति में आ गए| प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें केन्द्र में स्टील एवं खान मंत्रालय का भार सौंप दिया| 1964-1977 तक रेड्डी जी राज्यसभा के सदस्य रहे| 1967 में इंदिराजी की सरकार में वे थोड़े समय के लिए परिवहन, विमानन, नौवहन और पर्यटन मंत्री भी रहे। 1971 में लोकसभा चुनाव हुए रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) को कांग्रेस का टिकट मिला किन्तु उन्हें हार का सामना करना पड़ा| इस हार से निराश हो कर रेड्डी जी अपने गाँव अनंतपुर वापस चले गए और कृषि करने लगे| 1975 में वे वापस राजनीती में आए एवं 1977 में जनता पार्टी की सदस्यता प्राप्त की| अगले लोकसभा चुनाव में वे आंध्र प्रदेश की नंड्याल सीट से खड़े हुए और विजयी हुए| 26 मार्च 1977 में वे लोकसभा के स्पीकर नियुक्त हुए| 1977 में ही 13 जुलाई को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और राष्ट्रपति पद के लिए नियुक्त हुए| राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिये|


अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति का गठन रेड्डी जी(Neelam Sanjiva Reddy) ने अपनी लोकसभा की अध्यक्षता के दौरान किया था| वे एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे| सामान्य स्वाभाव किन्तु पक्के राष्ट्रवादी थे| श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, त्रिमूर्ति द्वारा 1958 में नीलम संजीव रेड्डी को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई|

जून 1966, 83 वर्ष की आयु में रेड्डी जी (Neelam Sanjiva Reddy) का निधन उनके पैतृक स्थान में हुआ| उनका दूरदर्शी नेतृत्व, मिलनसारिता और उपलब्धता ने उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों का परम प्रिय बना दिया था|

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