लालबहादुर शास्त्री (1904-1966) Prime Minister lal bahadur shastri jeevan parichay in hindi
शास्त्री जी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे| कार्यकाल के दौरान नेहरु जी की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को इस पद पर मनोनित किया गया | इनका स्थान तो द्वितीय था परन्तु इनका शासन ‘अद्वितीय’ रहा | इस सादगीपूर्ण एवम शान्त व्यक्ति को ‘भारत-रत्न’ से नवाज़ा गया|
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय (उत्तरप्रदेश) ब्रिटिश भारत में हुआ था | इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था,यह प्राथमिक शाला के अध्यापक थे और इन्हें ‘मुंशी जी’ संबोधित किया जाता था |इनकी माता का नाम राम दुलारी था | इन्हें बचपन में परिवार के सदस्य ‘नन्हे’ कहकर बुलाते थे| इनके बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया | तभी इनकी माता इन्हें लेकर अपने पिता हजारी लाल के घर मिर्जापुर आ गई | कुछ समय पश्चात इनके नाना का भी देहांत हो गया| इनकी प्राथमिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में ही हुई एवम आगे का अध्ययन हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में हुआ | काशी-विद्यापीठ में इन्होने ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की| इस वक्त के बाद से ही इन्होने ‘शास्त्री’ को अपने नाम के साथ जोड़ दिया| इसके बाद इन्हें शास्त्री के नाम से जाना जाने लगा | 1928 में इनका विवाह ललिता शास्त्री के साथ हुआ |इनके छह संताने हुई | इनके एक पुत्र अनिल शास्त्री काँग्रेस पार्टी के सदस्य रहे |
स्वतन्त्रता की लड़ाई में शास्त्री जी ने ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया, जिसने पुरे देश में स्वतन्त्रता की ज्वाला को तीव्र कर दिया | यह ‘संस्कृत भाषा’ में स्नातक हुए, तत्पश्चात शास्त्रीजी ’भारत सेवक संघ’ की सेवा में जुड़ गये| यह एक ‘गाँधी-वादी’ नेता थे जिन्होंने सम्पूर्ण जीवन देश और गरीबो की सेवा में लगा दिया | इन्होने सभी आंदोलनों एवम कार्यक्रमो में साथ निभाया फलस्वरूप कई बार जेल भी जाना पड़ा | इन्होने सक्रिय रूप से 1921 में ‘अहसयोग-आन्दोलन’, 1930 में ‘दांडी-यात्रा’, एवम 1942 में “भारत-छोडो” में भागीदारी निभाई | द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान भारत में आजादी की लड़ाई को भी तीव्र कर दिया गया | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ का गठन कर उसे “दिल्ली-चलो” का नारा दिया और इसी वक्त 8अगस्त 1942 में गाँधी जी ने ‘भारत-छोडो’ आन्दोलन तीव्र किया और भारतीयो को जगाने के लिए “करो या मरो” का नारा दिया परन्तु 9 अगस्त 1942 को शास्त्री जी ने इलाहबाद में इस नारे में परिवर्तन कर इसे “मरो नहीं मारो” कर देश वासियों का आव्हान किया | इस आन्दोलन के समय शास्त्री जी ग्यारह दिन भूमिगत रहे फिर 19 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिए गये |
स्वतंत्र भारत में यह उत्तर प्रदेश की संसद के सचिव नियुक्त किये गये | गोविन्द वल्लभ पन्त के मंत्रीमंडल की छाया में इन्हें पुलिस एवम परिवहन का कार्यभार दिया गया | इस दौरान शास्त्री जी ने पहली महिला को conducter नियुक्त किया एवम पुलिस विभाग में उन्होंने लाठी के बजाय पानी की बौछार से भीड़ को नियंत्रित करने का नियम बनाया |1951 में शास्त्री जी को ‘अखिल-भारतीय-राष्ट्रिय-काँग्रेस’ का महा-सचिव बनाया गया |यह हमेशा पार्टी की प्रति समर्पित रहे | उन्होंने 1952,1957,1962 के चुनाव में पार्टी के लिए बहुत काम कर प्रचार-प्रसार किया एवम काँग्रेस को भारी बहुमत से विजयी बनाया |
शास्त्री जी की काबिलियत को देख इन्हें जवाहरलाल नेहरु के बाद प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया परन्तु इनका कार्यकाल बहुत कठिन था | पूंजीपति देश एवम शत्रु-देश ने इनका शासन बहुत ही चुनोतिपूर्ण बना दिया था | अचानक ही 1965 में सांय 7.30 बजे पकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया | इस परिस्थिती में राष्ट्रपति ’सर्वपल्ली राधा कृष्णन ’ ने बैठक बुलवाई| इस बैठक में तीनो रक्षा विभाग के प्रमुख एवम शास्त्री जी सम्मिलित हुए| विचार-विमर्श के दौरान प्रमुखों ने इन्हें सारी स्थिती से अवगत कराया और आदेश की प्रतीक्षा की, तब ही शास्त्री जी ने जवाब में कहा “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइए की हमे क्या करना है ?” इस तरह भारत-पाक युद्ध के दौरान विकट परिस्थितियों में शास्त्री जी ने सराहनीय नेतृत्व किया और “जय-जवान जय-किसान” का नारा दिया,जिससे देश में एकता आई और भारत ने पाक को हरा दिया,जिसकी कल्पना पकिस्तान ने नहीं की थी, क्योंकि तीन वर्ष पहले चीन ने भारत को हराया था|
रूस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में मिले, कहा जाता है,उन पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए| समझोते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई| उस वक्त के अनुसार, उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, पर कहते है कि इनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था जबकि उन्हें जहर दिया गया था, जो कि सोची समझी साजिश थी, जो आज भी ताशकंद की आबो-हवा में दबा एक राज़ है| इस तरह 18 महीने ही भारत की कमान सम्भाली इनकी मृत्यु के बाद पुनह गुलजारी लाल नन्दा को कार्यकालीन प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया | इनकी अन्त्येष्टी यमुना नदी के किनारे की गई एवम उस स्थान को ‘विजय-घाट’ का नाम दिया गया |
1978 में ‘ललिता के आंसू ’ नामक पुस्तक में इनकी पत्नी ने शास्त्री जी की मृत्यु की करूँ कथा कही | कुलदीप नैयर जो की शास्त्री जी के साथ ताशकंद का हिस्सा थे उन्होंने ने भी कई तथ्य उजागर किये परन्तु कोई उचित परिणाम नहीं निकले | 2012 में इनके पुत्र सुनील शास्त्री ने भी न्याय की मांग की पर कुछ हो न सका |
शास्त्री जी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे| कार्यकाल के दौरान नेहरु जी की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को इस पद पर मनोनित किया गया | इनका स्थान तो द्वितीय था परन्तु इनका शासन ‘अद्वितीय’ रहा | इस सादगीपूर्ण एवम शान्त व्यक्ति को ‘भारत-रत्न’ से नवाज़ा गया|
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय (उत्तरप्रदेश) ब्रिटिश भारत में हुआ था | इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था,यह प्राथमिक शाला के अध्यापक थे और इन्हें ‘मुंशी जी’ संबोधित किया जाता था |इनकी माता का नाम राम दुलारी था | इन्हें बचपन में परिवार के सदस्य ‘नन्हे’ कहकर बुलाते थे| इनके बचपन में ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया | तभी इनकी माता इन्हें लेकर अपने पिता हजारी लाल के घर मिर्जापुर आ गई | कुछ समय पश्चात इनके नाना का भी देहांत हो गया| इनकी प्राथमिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में ही हुई एवम आगे का अध्ययन हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में हुआ | काशी-विद्यापीठ में इन्होने ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की| इस वक्त के बाद से ही इन्होने ‘शास्त्री’ को अपने नाम के साथ जोड़ दिया| इसके बाद इन्हें शास्त्री के नाम से जाना जाने लगा | 1928 में इनका विवाह ललिता शास्त्री के साथ हुआ |इनके छह संताने हुई | इनके एक पुत्र अनिल शास्त्री काँग्रेस पार्टी के सदस्य रहे |
स्वतन्त्रता की लड़ाई में शास्त्री जी ने ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया, जिसने पुरे देश में स्वतन्त्रता की ज्वाला को तीव्र कर दिया | यह ‘संस्कृत भाषा’ में स्नातक हुए, तत्पश्चात शास्त्रीजी ’भारत सेवक संघ’ की सेवा में जुड़ गये| यह एक ‘गाँधी-वादी’ नेता थे जिन्होंने सम्पूर्ण जीवन देश और गरीबो की सेवा में लगा दिया | इन्होने सभी आंदोलनों एवम कार्यक्रमो में साथ निभाया फलस्वरूप कई बार जेल भी जाना पड़ा | इन्होने सक्रिय रूप से 1921 में ‘अहसयोग-आन्दोलन’, 1930 में ‘दांडी-यात्रा’, एवम 1942 में “भारत-छोडो” में भागीदारी निभाई | द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान भारत में आजादी की लड़ाई को भी तीव्र कर दिया गया | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ का गठन कर उसे “दिल्ली-चलो” का नारा दिया और इसी वक्त 8अगस्त 1942 में गाँधी जी ने ‘भारत-छोडो’ आन्दोलन तीव्र किया और भारतीयो को जगाने के लिए “करो या मरो” का नारा दिया परन्तु 9 अगस्त 1942 को शास्त्री जी ने इलाहबाद में इस नारे में परिवर्तन कर इसे “मरो नहीं मारो” कर देश वासियों का आव्हान किया | इस आन्दोलन के समय शास्त्री जी ग्यारह दिन भूमिगत रहे फिर 19 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिए गये |
स्वतंत्र भारत में यह उत्तर प्रदेश की संसद के सचिव नियुक्त किये गये | गोविन्द वल्लभ पन्त के मंत्रीमंडल की छाया में इन्हें पुलिस एवम परिवहन का कार्यभार दिया गया | इस दौरान शास्त्री जी ने पहली महिला को conducter नियुक्त किया एवम पुलिस विभाग में उन्होंने लाठी के बजाय पानी की बौछार से भीड़ को नियंत्रित करने का नियम बनाया |1951 में शास्त्री जी को ‘अखिल-भारतीय-राष्ट्रिय-काँग्रेस’ का महा-सचिव बनाया गया |यह हमेशा पार्टी की प्रति समर्पित रहे | उन्होंने 1952,1957,1962 के चुनाव में पार्टी के लिए बहुत काम कर प्रचार-प्रसार किया एवम काँग्रेस को भारी बहुमत से विजयी बनाया |
शास्त्री जी की काबिलियत को देख इन्हें जवाहरलाल नेहरु के बाद प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया परन्तु इनका कार्यकाल बहुत कठिन था | पूंजीपति देश एवम शत्रु-देश ने इनका शासन बहुत ही चुनोतिपूर्ण बना दिया था | अचानक ही 1965 में सांय 7.30 बजे पकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया | इस परिस्थिती में राष्ट्रपति ’सर्वपल्ली राधा कृष्णन ’ ने बैठक बुलवाई| इस बैठक में तीनो रक्षा विभाग के प्रमुख एवम शास्त्री जी सम्मिलित हुए| विचार-विमर्श के दौरान प्रमुखों ने इन्हें सारी स्थिती से अवगत कराया और आदेश की प्रतीक्षा की, तब ही शास्त्री जी ने जवाब में कहा “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइए की हमे क्या करना है ?” इस तरह भारत-पाक युद्ध के दौरान विकट परिस्थितियों में शास्त्री जी ने सराहनीय नेतृत्व किया और “जय-जवान जय-किसान” का नारा दिया,जिससे देश में एकता आई और भारत ने पाक को हरा दिया,जिसकी कल्पना पकिस्तान ने नहीं की थी, क्योंकि तीन वर्ष पहले चीन ने भारत को हराया था|
रूस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में मिले, कहा जाता है,उन पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए| समझोते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई| उस वक्त के अनुसार, उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, पर कहते है कि इनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था जबकि उन्हें जहर दिया गया था, जो कि सोची समझी साजिश थी, जो आज भी ताशकंद की आबो-हवा में दबा एक राज़ है| इस तरह 18 महीने ही भारत की कमान सम्भाली इनकी मृत्यु के बाद पुनह गुलजारी लाल नन्दा को कार्यकालीन प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया | इनकी अन्त्येष्टी यमुना नदी के किनारे की गई एवम उस स्थान को ‘विजय-घाट’ का नाम दिया गया |
1978 में ‘ललिता के आंसू ’ नामक पुस्तक में इनकी पत्नी ने शास्त्री जी की मृत्यु की करूँ कथा कही | कुलदीप नैयर जो की शास्त्री जी के साथ ताशकंद का हिस्सा थे उन्होंने ने भी कई तथ्य उजागर किये परन्तु कोई उचित परिणाम नहीं निकले | 2012 में इनके पुत्र सुनील शास्त्री ने भी न्याय की मांग की पर कुछ हो न सका |
गुलजारी लाल नंदा के बारे में शानदार लेख
ReplyDeleteकृपया ये पोस्ट भी पढें
गुलजारी लाल नंदा का जीवन परिचय
शानदार लेख। कृपया ये भी पढें
ReplyDeleteलाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय